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महावीर श्रमण रहे हो ? वापस चले जाओ। भगवान् वापस चले आए।'
भगवान् एक गांव में गए। वहां किसी ने ठहरने को स्थान नहीं दिया। वे वापस जंगल में जा पेड़ के नीचे ठहर गए।'
'आप क्षमा करेंगे, मैं बीच में ही एक बात पूछ लेता हूं-भगवान् एकान्तवास के लिए वहां गए, फिर उन्हें क्या आवश्यकता थी गांव में जाने की ?'
'भगवान आहार-पानी लेने के लिए गांव में जाते थे। छह मासिक प्रवास में वे वर्षावास विताने के लिए गांव में गए । कहीं भी कोई स्थान नहीं मिला। उन्होंने वह वर्षावास इधर-उधर घूमकर, पेड़ों के नीचे, विताया। कभी-कभी आदिवासी लोग रुष्ट होकर उन्हें शारीरिक यातना भी देते थे।'
'क्या उस पर्वतीय प्रदेश में भगवान् को जंगली जानवरों का कष्ट नहीं हुआ ?'
'मुझे नहीं मालूम कि उन्हें सिंह-वाघ का सामना करना पड़ा या नहीं, किन्तु यह मुझे मालूम है कि कुत्तों ने उन्हें बहुत सताया । वहां कुत्ते बड़े भयानक थे। पास में लाठी होने पर भी वे काट लेते थे। भगवान् के पास न लाठी थी और न नालिका। उन्हें कुत्ते घेर लेते और काटने लग जाते। कुछ लोग छू-छूकर कुत्तों को बुलाते और भगवान् को काटने के लिए उन्हें इंगित करते। वे भगवान् पर झपटते, तब आदिवासी लोग हर्ष से झूम उठते । कूछ लोग भले भी थे। वे वहां जाकर कुत्तों को दूर भगा देते थे।
एक बार भगवान् पूर्व दिशा की ओर मुंह कर खड़े-खड़े सूर्य का आतप ले रहे थे। कुछ लोग आए। सामने खड़े हो गए। भगवान् ने उनकी ओर नहीं देखा । वे चिढ़ गए। वे हूं-हूं कर भगवान् पर थूककर चले गए । भगवान् शान्त खड़े रहे। वे परस्पर कहने लगे, 'अरे! यह कैसा आदमी है, थूकने पर भी क्रोध नहीं करता, गालियां नहीं देता।'
एक बोला, 'देखो, मैं अब इसे गुस्से में लाता हूं।'
वह धूल लेकर आया। भगवान् की आंखें अधखुली थीं। उसने भगवान् पर धूल फेंकी। भगवान् ने न आंखें मूंदी और न क्रोध किया। उसका प्रयत्न विफल हो गया। उसने क्रुद्ध होकर भगवान पर मुष्टि-प्रहार किया। फिर भी भगवान् की शान्ति भंग नहीं हुई। उसने ढेले फेंके । हड्डियां फेंकी। आखिर भाले से प्रहार किया। लोग खड़े-खड़े चिल्लाने लगे । भगवान् वैसे ही मौन और शान्त थे। उनकी मुद्रा से प्रसन्नता टपक रही थी। वह बोला, 'चलो, चलें। यह कोई आदमी नहीं
१. आचारांगचूर्णि, पृ० ३२० । २. आयारो, ६।३।८; अचारांगचूणि, पृ० ३१६ । ३. आवश्यकचूणि, पूर्वभाग, पृ० २६६ । ४. आयारो, ६।३।३-६।