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________________ आदिवामियों के बीच को बेना। एक व्यक्ति आगे बढ़ा, भगवान के पास आया। उसने पूछा, 'तुम फोन हो ?' भगवान् अपने चिन्तन में लीन थे । उसे कोई उत्तर नहीं मिला। उसने फिर उदात्त स्वर में पूछा, 'तुम कौन हो ?' 'मैं यह जानने की चेप्टा कर रहा हूं, में कौन हूं।' में पहली की भाषा नहीं समझता। नीधी-सरल भाषा में बतानो-तुम फोन हो? 'मैं भिक्ष।' 'यह हमारा बीड़ा-स्थल है, यहां किसलिए पड़े हो ?' 'जिसके लिए मैं भिक्ष बना हूं, उसी के लिए सदा हूं।' 'यह स्थान तुम्हें किसने दिया है ? 'यह किसी का नहीं है, इसलिए सब द्वारा प्रदत्त है।' 'अन्धा, तुम भिक्षु हो तो हमें धर्म गुनासो।' 'अनी में सत्य की खोज कर रहा हूं।' 'चलो, फिनी काम का नहीं है यह भिक्षु !'-इस आक्रोश के माय पर्यटकमन-आगे बढ़ गया। सूर्य पश्निम के अंचल में चला गया। रात फिर आ गई। अंधकार नपन हो गया। उस समय एक युगल आया। बाहर ने लावाज़ दी, 'भीतर कौन है ?' कोई उत्तर नहीं आया। दूसरी बार फिर आवाज दी, "मीतर सीन है ?' कोई उत्तर नहीं मिला । तीमरी बार फिर वही आवाज और भीतर से वहीं मोन । यह युगल भीतर गया । उसे मंहप के कोने में एक अस्पष्ट-सी छाया दिखाई दी। उसने निकट पचार देगा, कोई आदमी गहा है। यह प्रोधादेशने भर गया, भन्ने आदमी ! मीनदार मारा, फिर भी नहीं बोलते हो !' उसने अप गालियां दी और वह पता गया। भगवान् में सोचा, 'दगो गोरमान में भारत पहना अप्रिय हो, यह आश्चर्य माती है। आपन व विन्यस्यान में रहना भी अप्रिय हो जाता। पढ़ मन बोलना प्रिय हो, यह अद्भुत नहीं । जनत पर कि मौन रहना भी प्रियाता। ___ दागे मन में नीति करने का निमितको दनना चाहिए? पह यशर में कही भी चला जालं. नंग बाबा पर लोग जिजामा KRI मा मोरे पि । र, मोगरात की सोज परिणाम को पानी मिलता, निदेव को न मिले।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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