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आदिवासियों के बीच
कस्तूरी घिसने को सहन नहीं करती, यदि घर्षण से उसका परिमल प्रस्फुट नहीं होता। अगरबत्ती अपनी सुरभि से सारे वायुमण्डल को सुरभित नहीं कर पाती, यदि अग्निस्नान उसे मान्य नहीं होता। अग्निताप को सहकर सोना चमक उठता है। यह हमारी दुनिया ताप और संघर्ष की दुनिया है । इसमें वही व्यक्तित्व चमकता है, जो ताप और संघर्ष को सहता है।
भगवान् अपनी चेतना में निखार लाने के लिए कृतसंकल्प हैं। ताप और संघर्ष अनुचर की भांति उनके साथ-साथ चल रहे हैं।
भगवान् उद्यान के मंडप में खड़े हैं। सामने एक तालाब है। कुछ लोग उसके जल को उलीच-उलीचकर बाहर फेंक रहे हैं। वह खाली हो गया है। यह नये जल के स्वागत की तैयारी हो रही है। पानी बरसने लगा। सांझ होते-होते जलघर उमड़ आया। भूमि का कण-कण जलमय हो गया। नाले तेज़ी से बहने लगे। देखते-देखते तालाब भर गया। भगवान् के मन में वितर्क हुआ-कुछ समय पूर्व तालाब खाली था, अब वह भर गया है । वह किससे भरा है ? जल से । वह किसके माध्यम से भरा है ? नालों के माध्यम से। यदि नाले नहीं होते तो तालाव कैसे भरता ? उनका चितन वाहर से भीतर की ओर मुड़ गया। उनके मन में वितक हुआ-मनुष्य की चेतना का सरोवर किससे भरता है ? संस्कार से । वह किसके माध्यम से भरता है ? विचार के माध्यम से। यदि विचार नहीं होते तो मानवीय चेतना का सरोवर कैसे भरता ? वितर्क करते-करते वे इस बोध की भूमिका पर पहुंच गए-यह सरोवर खाली हो सकता है, संस्कारों को उलीच-उलीचकर बाहर फेंकने से । यह सरोवर खाली हो सकता है, नालों को बन्द कर देने से।
भगवान् का चिन्तन गहरे-से-गहरे में उतर रहा है। उस समय एक पर्यटकादल उद्यान में आ पहुंचा। वह मंडप के सामने आ खड़ा हो गया। उसने भगवान्