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________________ जीवन का विहंगावलोकन २८३ लाठी रखते, फिर भी उन्हें कुत्ते काट खाते । भगवान् के पास न लाठी थी, न कोई बचाव | वे अपने आत्मबल के सहारे वहां परिव्रजन कर रहे थे । ३१. अह गामकंटए भगवं, ते अहियासए अभिसमेच्चा ।" -भगवान् को लोग गालियां देते । भगवान् उन्हें कर्मक्षय का हेतु मानकर सह लेते। ३२. हयपुव्वो तत्थ दंडेण, अदुवा मुट्ठिणा अदु कुंताइ-फलेणं । अदु लुणा कवालेणं, हंता हंता बहवे कंदिसु ॥' - लाढ देश में कुछ लोग भगवान् को दंड, मुष्टि, भाले, फलक, ढेले और कपाल से आहत करते थे । ३३. मंसाणि छिन्नपुव्वाइं ।' —कुछ लोग भगवान् के शरीर का मांस काट डालते । ३४. उट्ठभंति एगया कार्यं । - कुछ लोग भगवान् पर थूक देते । ३५. अहवा पंसुणा अवकिरिंसु । - कुछ लोग भगवान् पर धूल डाल देते । ३६. उच्चालइय णिहणिसु । " - कुछ लोग मखौल करते और भगवान् को उठाकर नीचे गिरा देते । ३७. अदुवा आसणाओ खलइंसु । " --भगवान् आसन लगाकर ध्यान करते । कुछ लोगों को बड़ा विचित लगता। वे आकर भगवान् का आसन भंग कर देते । भगवान् इन सबको वैसे सहन करते मानो शरीर से उनका कोई सम्बन्ध न हो । - १. आयारो : ६।३।७ | २. आयारो : ६।३।१० । ६. भायारो : ६।३।११। ४. वायारो : ३।११। ५. वायारो : 81३199 1 ६. बायारो : हा३।१२ । ७. आयारो : ६।३।१२ ।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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