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________________ २८२ २७. अच्छिं पि णो पमज्जिया, गोवि य कंडूयये मुणी गायं । - भगवान् अक्षि का प्रमार्जन नहीं करते थे, शरीर को खुजलाते भी नहीं थे । २८. पसारित वाहुं परक्कमे, जो अवलंबिया ण कंधसि । - भगवान् शिशिर ऋतु में भी भुजाओं को फैलाकर रहते थे । वे भुजाओं से वक्ष को ढांक कर नहीं रहते । २६. जंसिप्पेगे पवेयंति, सिसिरे मारुए पवायंते । तंसिप्पे अणगारा, हिमवाए णिवायमेसंति ॥ संघाडिओ पविसिस्सामो, एहा य समादमाणा । पिहिया वा सक्खामो, अतिदुक्खं हिमगसंफासा ॥ तंसि भगवं अपडणे, अहे वियडे अहियासए दविए । णिक्खम्म एगदा राओ, चाएइ भगवं समियाए । ' श्रमण महावीर - शिशिर की ठंडी हवा में जब लोग कांपते थे, कुछ मुनि भी बर्फीली हवाओं के चलने पर गर्म स्थानों को खोजते थे, संघाटियों में सिमटकर रहते थे, अग्नि तपते थे और किवाड़ बन्द कर बैठते थे, उस समय भगवान् खुले स्थान में रहकर ध्यान करते थे न कोई आवरण और न कोई प्रावरण । ८. सहिष्णुता ३०. कुक्कुरा तत्थ हिसिनु निर्वातसु ॥ अ जण शिवारेश, लूसणए सुणए दसमाणे । छुटकारत आहे, समणं कुक्कुरा उसंतुत्ति ॥ एलिए जणे भुज्जो, बहवे वज्जभूमि फरसासी । लहिं गाय पालीयं समणा तत्थ एव विहरि || एवं पितत्य विहता, पुट्ठ पुत्रा असि गुणहि । माणागुणगृहि दुच्चरगाणि तत्य लादेहि ॥ ' 1 - -लाट देश में भगवान् को कुत्ते काटने आते । कुछ लोग कुत्तों को हटाते । लोग उन्हें काटने के लिए प्रेरित करते । उस प्रदेश में घूमने वाले श्रमण
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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