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________________ २७६ श्रमण महावीर निग्गंठ नातपुत्त के श्वेत वस्त्रधारी गृहस्थ शिष्य भी नातपुत्तीय निग्गंठों में वैसे ही विरक्त चित्त हैं, जैसे कि वे नातपुत्त के दुराख्यात, दुष्प्रवेदित, अनर्यानिक अन-उपशम-संवर्तनिक, अ-सम्यक्-संबुद्ध-प्रवेदित, प्रतिष्ठा-रहित, भिन्नस्तूप, आश्रय रहित धर्म विनय में थे। चन्द समणद्देश पावा में वर्षावास समाप्त कर सामगाम में आयूष्मान् आनन्द के पास आए और उन्हें निग्गंठ नातपुत्त की मृत्यु तथा निग्गंठों में हो रहे विग्रह की विस्तृत सूचना दी। आयुष्मान् आनन्द बोले-आवुस चुन्द ! भगवान् के दर्शन के लिए यह कथा भेंट रूप है। आओ, हम भगवान् के पास चलें और उन्हें निवेदित करें।' दोनों भगवान् के पास आए और अभिवादन कर एक ओर बैठ गए। आनन्द ने सारा घटना-वृत्त भगवान बुद्ध को सुनाया। जैन आगमों में उक्त घटना का कोई उल्लेख नहीं है। भगवान् महावीर के जीवनकाल में संघर्ष की दो घटनाएं घटित हुई थीं। भगवान् ५६ वर्ष के थे उस समय भगवान् के शिष्य जमालि ने संघ-भेद की स्थिति उत्पन्न की थी। जमालि के साथ पांच सौ श्रमण थे। उनमें से कुछेक जमालि का समर्थन कर रहे थे और कुछ उसका विरोध कर रहे थे । हो सकता है, उस घटना की स्मृति और काल की विस्मृति ने इस घटना को जन्म दिया हो। भगवान् जब ५८ वर्ष के थे, उस समय उनके शिष्य गौतम और भगवान् पार्श्व के शिप्य केशी में वाद हुआ था। उसमें धर्म, वेशभूषा आदि अनेक विषयों पर चर्चा हुई थी। बहुत संभव है कि पिटकों में यही घटना काल की विस्मृति के साथ उल्लिखित हुई हो।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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