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________________ २६६ . श्रमण महावीर भांडशाला से निकलकर शीघ्र भगवान् के पास आए। उन्होंने गोशालक के साथ हुई सारी बातचीत भगवान् के सामने रखी। वे भगवान् की शक्ति को जानते थे, । फिर भी उनके मन में एक प्रकंपन पैदा हो गया । वे कंपित स्वर में बोले-'भंते ! क्या गोशालक अपनी तैजस शक्ति से भस्म करने में समर्थ है ?' __भगवान ने कहा-'वह समर्थ है पर अर्हत् को भस्म नहीं कर सकता। उन्हें केवल परितप्त कर सकता है। आनन्द ! तुम जाओ और सभी श्रमणों को सावधान कर दो कि यदि गोशालक यहां आए तो कोई उससे वाद-विवाद न करे, पूर्व घटना की स्मृति न दिलाए और उसका तिरस्कार न करे।' ___ आनन्द ने सब श्रमणों को भगवान् के आदेश की सूचना दे दी। वे अपना काम पूरा कर भगवान् के पास आ रहे थे, इतने में आजीवक संघ के साथ गोशालक वहां आ पहुंचा। उसने आते ही कहा–'ठीक है आयुष्मान् काश्यप ! तुमने मेरे बारे में यह कहा-गोशालक मेरा शिष्य है । पर मैं तुम्हारा शिष्य नहीं हूं। जो तुम्हारा शिष्य था वह मर चुका । आयुष्मान् काश्यप ! मैं सात शरीरान्त प्रवेश कर चुका हूं १. सातवें मनुष्य भव में मैं उदायी कुंडियान था। राजगृह नगर के बाहर मण्डिकुक्ष-चैत्य में उदायी कुंडियान का शरीर छोड़कर मैंने ऐणेयक के शरीर में प्रवेश किया और बाईस वर्ष उसमें रहा। २. उदंडपुर नगर के चन्द्रावतरण-चैत्य में ऐणेयक का शरीर छोड़ा और मल्लराम के शरीर में प्रवेश किया। बीस वर्ष उसमें रहा। ३. चम्पा नगर के अंगमन्दिर-चैत्य में मल्लराम का शरीर छोड़कर मंडित के शरीर में प्रवेश किया और अठारह वर्ष उसमें रहा। ४. वाराणसी नगरी में काममहावन में माल्यमंडित का शरीर छोड़कर रोह के शरीर में प्रवेश किया और उन्नीस वर्ष उसमें रहा। ५. आलभिया नगरी के पत्तकलाय-चैत्य में रोह के शरीर का त्याग कर भरद्वाज के शरीर में प्रवेश किया और अठारह वर्ष उसमें रहा। ६. वैशाली नगरी के कोडिन्यायन-चैत्य में गौतम-पुत्र अर्जुन के शरीर में प्रवेश कर सतरह वर्ष उसमें रहा। ७. श्रावस्ती में हालाहला की भांडशाला में अर्जुन के शरीर को छोड़कर इस गोशालक के शरीर में प्रवेश किया। इस शरीर में सोलह वर्ष रहने के पश्चात् सर्व दुःखों का अन्त करके मुक्त हो जाऊंगा। इस प्रकार आयुष्मान् काश्यप ! एक सौ तेईस वर्ष में मैंने सात शरीरान्तपरावर्तन किया है।' गोशालक की बात सुनकर भगवान् बोले-'गोशालक ! यह ठीक वैसे ही है, जैसे कोई चोर भाग रहा है। पकड़ने वाले लोग उसका पीछा कर रहे हैं । उसे
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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