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संहयात्रा : सहयात्री
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पर । महावीर ने प्रासाद-विसर्जन का मंत्र दिया है। शालिभद्र ने अनगार होने का संकल्प कर लिया।
शालिभद्र का संकल्प सुन भद्रा शून्य हो गई। उसने पुत्र को प्रासाद में रखने के तीव्र प्रयत्न किए । पर वह सफल नहीं हो सकी। उसने हार कर कहा-'बेटे ! तुम घर में न रहो तो कम से कम मेरी एक बात अवश्य स्वीकार करो। एक-एक दिन में एक-एक पत्नी को छोड़ो, इस प्रकार बत्तीस दिन फिर घर में रहो।' शालिभद्र ने माता का अनुरोध स्वीकार कर लिया। __ शालिभद्र की बहन थी सुन्दरी। उसके पति का नाम था धन्य । उसने देखा सुन्दरी की आंखों से आंसू टपक रहे हैं । उसने आंसू का कारण पूछा। सुन्दरी ने कहा-'मेरा भाई प्रतिदिन एक-एक भाभी को छोड़ रहा है । उसकी स्मृति होते ही मेरी आंखों में आंसू छलक पड़े।'
धन्य ने सुन्दरी की बात सुनकर कहा-'तेरा भाई कायर है । जब घर छोड़ना ही है तब एक-एक पत्नी को क्या छोड़ना?'
सुन्दरी ने व्यंग में कहा—'कहना सरल है, करना सरल नहीं है।'
'क्या तुम परीक्षा चाहती हो ?' यह कहकर उसने आठों पत्नियों को एक साथ छोड़ दिया।
शालिभद्र और धन्य-दोनों भगवान महावीर के पास दीक्षित हो गए।
१. विषष्टिशलाकापुरुषचरित्न १०१०१५७-१४८ ।