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________________ ४४ संघ-भेद क्षत्रियकुण्डग्राम में जमालि नाम का क्षत्रियकुमार रहता था। एक दिन उसने देखा क्षत्रियकुण्ड के निवासी ब्राह्मणकुण्ड की ओर जा रहे हैं । उसने अपने कंचुकी को बुलाकर इसका कारण पूछा। उसने बताया-'भगवान् महावीर ब्राह्मणकुण्ड में पधारे हैं । हमारे ग्रामवासी लोग उनके पास जा रहे हैं।' जमालि के मन में भी जिज्ञासा उत्पन्न हुई । वह अपने परिवार के साथ भगवान् के समवसरण में गया। भगवान् के पास धर्म सुन जमालि सम्बुद्ध हो गया। वह बोला-'भंते ! आपके प्रवचन में मेरी श्रद्धा निर्मित हुई है । आपने जो कहा वह सत्य है, असंदिग्ध है। भंते ! मेरे मन में आत्म-दर्शन की भावना प्रबल हो गई है। मैं अब मुनि बनना चाहता हूं।' भगवान् ने कहा-'जैसी तुम्हारी इच्छा हो वैसा करो।' ___भगवान् स्वतन्त्रता के प्रवक्ता थे। वे किसी पर किसी प्रकार का दबाव नहीं डालते थे। उनका स्वीकृति-सूत्र था 'यथासुखम्' । भगवान् ने 'यथासुखम्' कहकर जमालि को दीक्षित होने की स्वीकृति दी। जमालि माता-पिता और पत्नियों की स्वीकृति प्राप्त कर मुनि बन गया। उसके साथ पांच सौ क्षत्रियकुमार दीक्षित हुए। वह ग्यारह अंगसूत्रों का अध्ययन कर 'आचारज्ञ' और तपस्या की आराधना कर तपस्वी हो गया। एक बार जमालि भगवान् के पास आया। उसने कहा-'भंते ! मैं पांच सौ श्रमणों के साथ जनपद-विहार करना चाहता हूं। आप मुझे आज्ञा दें।' भगवान् मौन रहे। जमालि ने फिर पूछा । भगवान् फिर मौन रहे। जमालि ने भगवान् की अनुमति प्राप्त किए बिना ही जनपद-विहार के लिए प्रस्थान कर दिया। जमालि पांच सौ श्रमणों के साथ जनपद-विहार करता हआ श्रावस्ती पहुंचा। वह कोष्ठक चैत्य में ठहरा हुआ था। असंतुलित और अव्यवस्थित भोजन के कारण उसे पित्त-ज्वर हो गया। उसका शरीर दाह से जलने लगा। उसने श्रमणों से
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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