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________________ २५८ श्रमण महावीर आशा, निराशा और घृणा की सारी कहानी सुना दी। भद्रा ने उन्हें आश्वासन दिया और उनके सारे रत्नकम्बल खरीद लिये । वे प्रसन्न होकर मगध की गौरवगाथा गाते हुए अपने स्थान पर चले गए। महारानी चिल्लणा ने दूसरे दिन महाराज से एक रत्नकम्बल खरीद लेने का आग्रह किया। सम्राट ने व्यापारियों को बुलाकर एक रत्नकम्बल खरीदने की बात कही। उन्होंने कहा-'सब कम्बल बिक गए।' सम्राट् ने आश्चर्य के साथ पूछा-'इतने कम्बल किन लोगों ने खरीदे ?' "एक ही व्यक्ति ने।' 'ऐसा कौन है ?' 'आपके राज्य में श्रीमंतों की कमी नहीं है।' 'फिर भी मैं नाम जानना जाहता हूं।' 'हमारे कम्बलों को खरीदने वाली एक महिला है। उसका नाम है भद्रा।' सम्राट् ने भद्रा के पास एक अधिकारी भेजा। उसने भद्रा को सम्राट की भावना बताई। भद्रा ने कहा-'मैंने वे कम्बल पूत्र-वधओं को दे दिए। उन्होंने पैर पोंछकर फेंक दिए।' अधिकारी ने सम्राट को भद्रा की बात बता दी। उसकी बात सुन सम्राट् अवाक् रह गया। उसने शालिभद्र को देखने की इच्छा प्रकट की। भद्रा ने सम्राट को अपने घर पर आमंत्रित किया। सम्राट् भद्रा के घर पहुंचा। उसका ऐश्वर्य देख वह चकित रह गया। भद्रा ने शालिभद्र से कहा-'बेटे ! नीचे चलो ! तुम्हें देखने के लिए सम्राट् आया है ।' शालिभद्र नहीं जानता था कि सम्राट क्या होता है। वह अपने ही कार्य और वैभव में तन्मय था । उसने अपनी धुन में कहा-'मां! तुम जो लेना चाहो वह ले लो। मुझे क्या पूछती हो ?' भद्रा ने कहा-'बेटे ! चुप रहो। यह कोई खरीदने की वस्तु नहीं है । यह मगध का सम्राट् है, अपना स्वामी है।' स्वामी का नाम सुनते ही शालिभद्र का माथा ठनक गया। उसकी आत्मा प्रकंपित हो गई। उसकी स्वतन्त्रता पर पाला पड़ गया । वह अनमना होकर सम्राट के पास गया। सम्राट ने उसे अपने पास बैठा लिया। उससे सौहार्दपूर्ण बातें कीं। वह कुछ ही क्षणों में खिन्न हो गया। भद्रा के अनुरोध पर सम्राट ने उसे जल्दी ही छुट्टी दे दी। उसका शरीर पसीने से और मन ग्लानि से भर गया। उसकी स्वतन्त्रता के बांध में गहरी दरार हो गई। ___ शालिभद्र का नवनीत-सा सुकुमार शरीर, स्वर्गीय वैभव और सुखमय जीवन । इन सबसे ऊपर थी उसकी स्वतन्त्रता की अनुभूति । वह उसी के दर्पण में अपने जीवन का प्रतिबिम्ब देखता था। उस पर चोट लगते ही उसका स्वप्न चूर हो गया। वह स्वतन्त्रता के लिए तड़प उठा, जैसे मछली पानी के लिए तड़पती है । प्रासाद में उसे स्वतन्त्रता नहीं मिल सकती। वह मिल सकती है प्रासाद का विसर्जन करने
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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