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श्रमण महावीर
कुछ अप्सराएं आईं और प्रणाम की मुद्रा में बोलीं-'यह स्वर्ग है । यह है स्वर्गीय वैभव । आप यहां जन्मे हैं । हम जानना चाहती हैं कि आपने पिछले जन्म में क्या कर्म किए ? क्या चोरी की ? डाका डाला ? मनुष्यों को सताया? उन्हें मारापीटा ? या और कुछ किया ? ऐसे कार्य करने वाले ही स्वर्ग में जन्म लेते हैं।' ___रोहिणेय अवाक रह गया। वह कुछ समझ नहीं सका । उसने चारों ओर दृष्टि दौड़ाई। अप्सराओं की ओर देखा । उसे महावीर की वाणी याद आ गई । 'इनके नेत्र अनिमिष नहीं हैं। इनके पैर धरती को छू रहे हैं।' ये मानवीय युवतियां हैं, अप्सराएं नहीं हैं । यह अभयकुमार की कूटनीति का चक्र है । वह स्थिति को ताड़ गया। उसने कहा-'मैं दुर्गचण्ड हूं। अभी जीवित हूं, मनुष्य-लोक में ही हूं। आप मेरी आंखों पर पर्दा डालने का यत्न न करें।' गुप्तचर ने अभयकुमार को सारी घटना की सूचना दी। उसने असफलता का अनुभव किया और रोहिणेय को ससम्मान शालग्राम गांव की ओर भेज दिया।
रोहिणेय का हृदय परिवर्तन हो गया। उसने सोचा-महावीर की एक वाणी ने मुझे उबार लिया। मेरे पिता ने उनके पास जाने और उनकी वाणी सुनने से मुझे रोककर अच्छा काम नहीं किया। अब मैं उनके पास जाऊं और उनकी वाणी सुनूं । ___ भगवान् महावीर प्रवचन कर रहे थे। श्रेणिक, अभयकुमार और अन्य अधिकारी वहां उपस्थित थे । रोहिणेय भी उनके पास बैठा था। भगवान् ने अहिंसा की व्याख्या की-'सुख आत्मा की स्वाभाविक अनुभूति है। इन्द्रिय-सुख भी उसी अनुभूति का एक स्फुलिंग है। पर दूसरे के सुख को लूटकर सुख पाने का प्रयत्न दुःख की शृंखला का निर्माण करता है । जो दूसरे का सुख लूटता है, उसे सत्य का अनुभव नहीं होता । इसका अनुभव उसे होता है जो दूसरे के सुख को लूटकर सुखी होने का प्रयत्न नहीं करता।' ___'एक पुरुष पक्षियों का प्रेमी था । वह अनेक पक्षियों को पिंजड़े में बन्द रखता था। उसने कभी अनुभव नहीं किया कि दूसरों की स्वतंत्रता का अपहरण कितना दुःखद होता है । एक बार वह किसी कुचक्र में फंस गया। आरक्षी ने उसे बन्दी बना कारा में डाल दिया। उसकी स्वतंत्रता छिन गई। दूसरों को पिंजड़े में डालने वाला स्वयं पिंजड़े में चला गया। अब उसे सचाई का अनुभव हुआ। उसने अपने परिवार के पास संदेश भेजा-मेरा हित चाहते हो तो सब पक्षियों को मुक्त कर दो। मुझे पिंजड़े की परतंत्रता का अनुभव हो चुका है। अब मैं किसी को पिंजड़े में बन्द नहीं रख सकता।' ___ भगवान् की वाणी सुन रोहिणेय का ज्ञानचक्षु खुल गया। उसे हिंसा का प्रत्यक्ष दर्शन हुआ। वह खड़ा होकर बोला-'भंते ! मुझे हिंसा के प्रति ग्लानि हुई है। मैं अहिंसा का जीवन जीना चाहता हूं। आप मुझे इसकी स्वीकृति दें।'