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पारदर्शी दृष्टि : व्यक्त के तल पर अव्यक्त का दर्शन
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कर ली। किन्तु भगवान् माता-पिता की अनुमति के बिना किसी को दीक्षित नहीं करते थे। अतिमुक्तक माता-पिता की स्वीकृति प्राप्त करने उनके पास पहुंचा। उन्हें प्रणाम कर बोला
'आज मैं भगवान महावीर के पास जाकर आया हूं।' 'कुमार ! तुमने बहुत अच्छा किया।' 'मां ! मुझे भगवान् बहुत अच्छे लगे।' 'बेटा ! वे वास्तव में ही अच्छे हैं, इसलिए अच्छे लगने ही चाहिए।' 'मां! जी करता है कि मैं भगवान के पास ही रहूं।'
'वेटा ! भगवान् अनगार हैं । हम गृहवासी हैं । हम भगवान् के साथ नहीं रह सकते।'
'मां ! मैं चाहता हूं कि भगवान् के पास दीक्षित होकर अनगार बन जाऊं और उनके पास रहूं।'
'बेटा ! अभी तुम बालक हो। अभी तुम्हारी बुद्धि परिपक्व नहीं हुई है । क्या तुम धर्म को समझते हो ?' ___ 'मां ! मैं जिसे जानता हूं, उसे नहीं जानता। जिसे मैं नहीं जानता, उसे जानता हूं।' . . बेटा! तुम जिसे जानते हो, उसे कैसे नहीं जानते ? जिसे नहीं जानते, उसे कैसे जानते हो ?' - 'मां! मैं जानता हूं कि जो जन्मा है, वह अवश्य मरेगा। पर मैं नहीं जानता कि वह कब, कहां और कैसे मरेगा ? मैं नहीं जानता कि जीव किन कर्मों से तिर्यञ्च, मनुष्य, नारक और देव बनता है। मां ! मैं नहीं कह सकता कि मैं क्या जानता हूं और क्या नहीं जानता। किन्तु मैं जानना चाहता हूं, इसीलिए आप मुझे भगवान् की शरण में जाने की स्वीकृति दें।'
माता-पिता को लगा कि उसका अन्तश्चक्षु उद्घाटित हो गया है। वह आज ऐसी भाषा बोल रहा है जैसी पहले कभी नहीं सुनी थी। वे कुमार की भावना और समझ से सम्मोहित जैसे हो गए। उन्होंने दीक्षित होने की स्वीकृति दे दी। कुमार भगवान के पास दीक्षित हो गया। उसकी जिज्ञासा पूर्ण हो गई। भगवान् की पारदर्शी दृष्टि ने उसकी क्षमता को देखा और समय के सशक्त हाथों ने उसे अनावृत कर दिया।
१. अंतगडदसाओ, ६१७१-६६।
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