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श्रमण महावीर भगवान् ने कहा-'कुमार-श्रमण अतिमुक्तक इसी जन्म में मुक्त होगा। तुम उसका उपहास मत करो। उसकी शक्तियां शीघ्र ही विकसित होंगी। तुम उसे सहारा दो । उसका सहयोग करो। उसकी अवहेलना मत करो।'
भगवान् की वाणी सुन सभी स्थविर गम्भीर हो गए। वे देख रहे थे व्यक्त को । उसके नीचे बहती हुई अव्यक्त की धारा उन्हें नहीं दीख रही थी। इसीलिए अतिमुक्तक के प्रमाद-क्षण को देखकर उनके मन में उफान आ गया । भगवान् ने भविष्य की सम्भावना का छींटा डालकर उसे शान्त कर दिया। ____ अतिमुक्तक बहुत छोटी अवस्था में दीक्षित हुए। जीवन के तीन याम होते हैं-बाल्य, यौवन और वार्धक्य । भगवान् ने तीनों यामों में दीक्षित होने की योग्यता का प्रतिपादन किया। अतिमुक्तक प्रथम याम में दीक्षित हुए।
भगवान् महावीर पोलासपुर में विराज रहे थे । एक दिन गौतम स्वामी भिक्षा के लिए गए। वे इन्द्रस्थान के निकट जा रहे थे। बहुत सारे किशोर वहां खेल रहे थे। पोलासपुर के राजा विजय का पुत्र अतिमुक्तक भी वहां खेल रहा था। उसने गौतम को देखा। उसके मन में एक जिज्ञासा उत्पन्न हुई। उसने गौतम के पास आकर पूछा
'आप कौन हैं ?' 'मैं श्रमण हूं।' 'आप क्यों घूम रहे हैं ?' 'मैं भिक्षा के लिए नगर में जा रहा हूं।'
'आप मेरे साथ चलें। मैं आपको भिक्षा दिला दूंगा-'यह कहकर अतिमुक्तक ने गौतम की अंगुली पकड़ ली। वह गौतम को अपने प्रासाद में ले गया। उसकी माता श्रीदेवी ने गौतम को आदरपूर्वक भिक्षा दी । गौतम वापस जाने लगे । कुमार अतिमुक्तक ने पूछा
'भंते ! आप कहां रहते हैं ?' 'मैं अपने धर्माचार्य के पास रहता हूं।' 'आपके धर्माचार्य कौन हैं ?' 'श्रमण भगवान् महावीर।' 'वे कहां हैं?' 'यहीं श्रीवन उद्यान में।' 'मैं भी आपके धर्माचार्य के पास जाना चाहता हूं।' 'जैसी तुम्हारी इच्छा।'
कुमार अतिमुक्तक गौतम के साथ-साथ भगवान के पास आया। उसने भगवान् को वंदना की। भगवान् का उपदेश सुना। उसका मन फिर घर लौटने से इन्कार करने लगा। उसने दीक्षित होने की प्रार्थना की । भगवान् ने उसकी प्रार्थना स्वीकार