________________
सहयात्रा : सहयात्री
भगवान् महावीर शाश्वत की यात्रा पर थे। इसलिए उन्होंने उन्हीं सामयिक प्रश्नों का स्पर्श किया जो शाश्वत से सम्बन्धित थे। शेष सामयिक प्रश्नों के विषय में उन्होंने अपना मौन नहीं खोला। वे न समाजशास्त्री थे और न राज्यशास्त्री । वे यात्री थे और वैसे ही यात्री जो लक्ष्य तक पहुंचे बिना रुके नहीं। वे अकेले चले थे। उनकी यात्रा इतनी सफल रही कि हज़ारों-हजारों व्यक्ति उनके साथ चलने लगे। उनके साथ चलने वालों में चौदह हजार श्रमण थे और छत्तीस हजार श्रमणियां, एक लाख उनसठ हजार उपासक थे और तीन लाख अठारह हज़ार उपासिकाएं। अनुगामी और भी थे। यह संख्या उन लोगों की है जो भगवान के सहयात्री थे, जिन्होंने पूर्ण या अल्पमात्रा में व्रत की दीक्षा ली थी। भगवान् ने अन्तर्ज्ञान की दिशा का सबके लिए उद्घाटन किया। सबमें आत्मविश्वास जगाया। अनेक साधक शक्ति को बटोर आगे बढ़े। भगवान् के तेरह सौ श्रमण प्रत्यक्षज्ञानी (अवधिज्ञानी) हुए, सात सौ श्रमणों और चौदह सौ श्रमणियों ने कैवल्य प्राप्त किया। उनकी यात्रा प्रतिदिन सफलता का आलिंगन करती गई। ___ भगवान् के सहयात्री विभिन्न देशों, विभिन्न दिशाओं, विभिन्न जातियों, विभिन्न सम्प्रदायों और विभिन्न परिस्थितियों से आए हुए लोग थे।
१. साकेत में जिनदेव नाम का व्यापारी रहता था । वह देशाटन करता हुआ कोटिवर्ष नगर में गया। वहां का शासक था किरात (चिलात)। जिनदेव ने उसे बहमल्य रत्न उपहार में दिए। किरात ने पूछा-'ये रत्न कहां उत्पन्न होते हैं ?' जिनदेव ने कहा-'मेरे देश में उत्पन्न होते हैं।' किरात ने कौशल देश में जाने की इच्छा प्रकट की। जिनदेव ने अपने राजा की स्वीकृति प्राप्त कर उसे कौशल की यात्रा का निमंत्रण दे दिया। वह जिनदेव के साथ साकेत पहुंचा। राजा शत्रुजय ने उसका स्वागत किया। वह राजा का अतिथि होकर वहां ठहर गया।