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________________ २४६ श्रमण महावीर भगवान् ने कहा-'कुमार-श्रमण अतिमुक्तक इसी जन्म में मुक्त होगा। तुम उसका उपहास मत करो । उसकी शक्तियां शीघ्र ही विकसित होंगी। तुम उसे सहारा दो । उसका सहयोग करो। उसकी अवहेलना मत करो।' भगवान् की वाणी सुन सभी स्थविर गम्भीर हो गए। वे देख रहे थे व्यक्त को । उसके नीचे बहती हुई अव्यक्त की धारा उन्हें नहीं दीख रही थी। इसीलिए अतिमुक्तक के प्रमाद-क्षण को देखकर उनके मन में उफान आ गया । भगवान् ने भविष्य की सम्भावना का छींटा डालकर उसे शान्त कर दिया। अतिमुक्तक बहुत छोटी अवस्था में दीक्षित हुए। जीवन के तीन याम होते हैं-वाल्य, यौवन और वार्धक्य । भगवान् ने तीनों यामों में दीक्षित होने की योग्यता का प्रतिपादन किया। अतिमुक्तक प्रथम याम में दीक्षित हुए। भगवान् महावीर पोलासपुर में विराज रहे थे । एक दिन गौतम स्वामी भिक्षा के लिए गए । वे इन्द्रस्थान के निकट जा रहे थे। बहुत सारे किशोर वहां खेल रहे थे। पोलासपुर के राजा विजय का पुत्र अतिमुक्तक भी वहां खेल रहा था। उसने गौतम को देखा। उसके मन में एक जिज्ञासा उत्पन्न हुई। उसने गौतम के पास आकर पूछा 'आप कौन हैं ?' 'मैं श्रमण हूं।' 'आप क्यों घूम रहे हैं ?' 'मैं भिक्षा के लिए नगर में जा रहा हूं।' 'आप मेरे साथ चलें। मैं आपको भिक्षा दिला दंगा-'यह कहकर अतिमुक्तक ने गौतम की अंगुली पकड़ ली । वह गौतम को अपने प्रासाद में ले गया। उसकी माता श्रीदेवी ने गीतम को आदरपूर्वक भिक्षा दी । गौतम वापस जाने लगे । कुमार अतिमुक्तक ने पूछा ते ! आप कहां रहते हैं ?' में अपने धर्माचार्य के पास रहता हूं।' 'आपने धर्माचार्य कोन हैं ?' 'श्रमण भगवान महावीर ।' 'के यहां?' 'यही श्रीवन उद्यान में।' भी आक धर्माचार्य के पास जाना चाहता हूं।' "मी तुम्हारी न्या।' अमार गित र गौतम के माय-माय भगवान् के पास आया । उसने भगवान् को बदहा ती भवान् का उपदेश गुना। उसका मन फिर घर लौटने से इन्कार मामि होने की प्रार्थना की। भगवान ने उसकी प्रार्थना ग्वीकार
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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