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सर्वजन हिताय : सर्वजन सुखाय
२२३ भगवान् महावीर तीर्थकर थे-~-शास्त्रकार थे। दूसरे के वचन को उद्धृत करना उनके लिए आवश्यक नहीं था। फिर भी उन्होंने भगवान पार्श्व के वचन को उद्धृत किया। इसका हेतु था भगवान् पार्श्व के श्रमणों को सत्य का वोध कराना । भगवान् पार्श्व के वचन का साक्ष्य देने से वह सरलता से हो सकता था, इसलिए भगवान् ने भगवान पार्श्व के वचन का साक्ष्य प्रस्तुत किया। साथ-साथ भगवान् ने यह रहस्य भी समझा दिया कि सत्य स्वयं सत्य है । वह किसी व्यक्ति के निरूपण से सत्य नहीं बनता । जिन्हें दर्शन प्राप्त हो जाता है, वे सब उसी सत्य को देखते हैं, जो स्वयं सत्य है, किसी के द्वारा निरूपित होने से सत्य नहीं है।
भगवान् ने गौतम को आत्मा का बोध देने के लिए वेद मंत्र उद्धृत किए थे। इन सबके पीछे भगवान् का सापेक्षवाद वोल रहा था। सत्य सबके लिए एक है। उसका दर्शन सबको हो सकता है। वह किसी के द्वारा अधिकृत नहीं है। उसकी अभिव्यक्ति पर भी किसी का एकाधिकार नहीं है । इस यथार्थ का प्रतिपादन करने के लिए भी भगवान् दूसरों के वचन को उद्धृत करते और जिज्ञासा करने वाले को यह समझाते कि तुम जो जानना चाहते हो, उसका उत्तर तुम्हारे धर्मशास्त्र में भी दिया हुआ है।
५. साधारण पटि, भा, १०१६ पैदपाय यो समता मे रहितो ।