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________________ ३६ धर्म-परिवर्तन सम्मत और अनुमत कुछ लोग पूछते हैं कि जैन हिन्दू हैं या नहीं ? उलझन-भरा प्रश्न है, इसलिए इसका उत्तर भी उलझन-भरा है । जैन कोई जाति नहीं है । वह एक धर्म है, तत्त्वदर्शन है, विचार है। भारतीय जनता ने अनेक धर्मों को जन्म दिया है। उनमें मुख्य दो हैं-श्रमण और वैदिक । श्रमण धर्म पौरुषेय दर्शन के आधार पर चलता है । वैदिक धर्म का आधार है अपौरुषेय वेद । यह प्रश्न हो कि जैन वैदिक हैं या नहीं ? अथवा वैदिक जैन हैं या नहीं ? अथवा बौद्ध वैदिक हैं या नहीं ? यह सरल प्रश्न है और इसका उत्तर सरलता से दिया जा सकता है । जैन वैदिक नहीं हैं और वैदिक जैन नहीं हैं। दोनों दो भिन्न विचारधाराओं को मानकर चलते हैं, इसलिए दोनों एक नहीं हैं। किन्तु हिन्दू दोनों हैं । हिन्दू एक जाति है, जैन और वैदिक कोई जाति नहीं है । वह एक विचार है, दर्शन है। भगवान महावीर के युग में चलिए। वहां आपको एक परिवार में अनेक धर्मों के दर्शन होंगे। पति वैदिक है, पत्नी जैन । पति जैन है, पत्नी वैदिक । पति बौद्ध है, पत्नी जैन । पति आजीवक है, पत्ती बौद्ध । धर्म का स्वीकार उनके पारिवारिक जीवन में उलझन पैदा नहीं करता था। वे अपने जीवन में धर्म का परिवर्तन भी करते थे। जैन बौद्ध हो जाता और बौद्ध जैन । जैन वैदिक हो जाता और वैदिक जैन । यह जाति-परिवर्तन नहीं, किन्तु विचार-परिवर्तन था। भारतीय जाति में इस विचार-परिवर्तन की पूरी स्वतन्त्रता थी। प्रदेशी राजा नास्तिक था। वह परलोक और पुनर्जन्म को नहीं मानता था। उसका अमात्य चित्त पूरा आस्तिक था। भगवान् पार्श्व का अनुयायी था। उसके प्रयत्न से प्रदेशी कुमार-श्रमण केशी के पास गया। उसके विचार बदल गए। वह भगवान् पार्श्व का अनुयायी बन गया।' स्कंदक, अम्मड़ आदि अनेक परिव्राजक १. रायपसेणइयं, सून ७८६ ।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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