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श्रमण महावीर
नित्य-चर्या के अनुसार यक्ष को पुप्पांजलि अर्पित करने के लिए यक्षायतन में प्रविष्ट हुआ। वह नहीं जानता था कि आज नियति ने उसके लिए पहले से ही कोई चक्रव्यूह रच रखा है। ___ गोष्ठिक पुरुपों ने अर्जुन के पीछे वंधुमती को आते देखा। उनकी काम-वासना जागृत हो गई। वे यक्षायतन के प्रकोष्ठ में छिप गए। मालाकार पुष्पांजलि-अर्पण के लिए नीचे झुका । उस समय छहों पुरुष बाहर निकले और मालाकार को कसकर बांध दिया । अब बंधुमती अरक्षित थी। मालाकार का शरीर बंधा हुआ था, किन्तु उसकी आंखें मुक्त थी और उससे भी अधिक मुक्त था उसका मन। गोष्ठिकों द्वारा बंधुमती के साथ किया गया अतिक्रमण वह सहन नहीं कर सका। वह भावुकता के चरम विन्दु पर पहुंचकर वोला-'मुद्गरपाणि ! मैं तुम्हारी इस काष्ठ प्रतिमा से प्रवंचित हुआ हूं। मैंने व्यर्थ ही शत-शत कार्षापणों के पुष्प इसके सामने चढ़ाए हैं । यदि तुम यहां होते तो क्या तुम्हारे सामने यह दुर्घटना घटित होती?' वह भावना के आवेश में इतना वहा कि अपनी स्मृति खो बैठा। अकस्मात् एक तेग आवाज़ हुई । मालाकार के बंधन टूट गए। उसका आकार विकराल हो गया। उसने मुद्गर उठाया और सातों को मौत के घाट उतार दिया। उसका मावेश अब भी शान्त नहीं हुआ।
अर्जुन की पुष्पवाटिका राजगृह के राजपथ के सन्निकट थी। उधर लोगों का आवागमन चलता था । पर यक्षायतन में घटित घटना का किसी को पता नहीं चला । मालाकार ने दूसरे दिन फिर सात पथिकों (छह पुरुप और एक स्त्री) की हत्या कर डाली। इस घटना से नगर में आतंक फैल गया। नगर के आरक्षिकों ने अनेक प्रयत्न किए पर उस पर नियंत्रण नहीं पा सके। ___सात मनुष्यों की हत्या करना अर्जुन का दैनिक कार्यक्रम बन गया । महाराज श्रेणिक के आदेश से राजगृह में यह घोषणा हो गई—'मुद्गरपाणि-यक्षायतन की दिना मे कोई व्यक्ति न जाए।' इस घोषणा के साथ राजपथ अवरुद्ध हो गया। फिर भी युद्ध भूले-भटके लोग उधर चले जाते और मालाकार के शिकार बन जाते। माय मनुष्यों की त्या का यह सिलसिला लम्बे समय तक चलता रहा । छह गोपियों के पास या प्रायश्चित्त न जाने कितने निरपराध लोगों को करना पड़ा।
जिम गजगत को भगवान् अमय का पाठ पढ़ा रहे थे, जहां भगवान् की अहिंसा मानिनामांति ननन प्रवाहित हो रही थी, जिमका कण-कण श्रद्धा और मयादीमया अभिपित हो रहा था, वह नगर आज मय मे संत्रस्त, हिमा मे
मादेश पारित होना था। यह महावीर के लिए चुनौती थी।
की कालीदिम को, उनकी संकल्प-गक्ति को और उनके धर्म की . :: न म चुनौती को जला। वे गजगृह पहुंने और :: :म गमगद के नागरिकों को भगवान के आगमन का