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________________ समता के तीन आयाम संस्कार कर दिया । सुलस कालसोकरि का पुत्र था। परिवार के लोगों ने उससे पिता का पद संभालने का अनुरोध किया । सुलस ने उसे ठुकरा दिया । 'मैं कसाई का धन्धा नहीं कर सकता' — उसने स्पष्ट शब्दों में अपनी भावना प्रकट कर दी । १९९ परिवार के लोग बड़े असमंजस में पड़ गए । सारा काम ठप्प हो गया । उन्होंने फिर अनुरोध किया । सुलस ने विनम्र शब्दों में कहा--'मुझे जैसे मेरे प्राण प्रिय हैं, वैसे ही दूसरों को अपने प्राण प्रिय हैं । फिर मैं अपने प्राणों की रक्षा के लिए दूसरों के प्राण कैसे लूट सकता हूं ?' स्वजन-वर्ग ने प्राणी-हिंसा में होने वाले पाप के विभाजन का आश्वासन दिया । उन्होंने एक भैंसे को मारकर कार्य प्रारम्भ करने का अनुरोध किया । सुलस ने अपने पिता के कुठार को हाथ में उठाया । स्वजन वर्ग हर्ष से झूम उठा। सुलस ने सामने खड़े भैंसे को करुणापूर्ण दृष्टि से देखा और कुठार अपनी जंघा पर चलाया । वह मूच्छित होकर गिर पड़ा। जंघा से रक्त की धार बह चली। थोड़ी देर बाद वह सावचेत हुआ । वह करुणापूर्ण स्वर में बोला - 'बंधुओ ! यह घाव मुझे पीड़ित कर रहा है । कृपया आप मेरी पीड़ा को वंटाएं, जिससे मेरी पीड़ा कम हो ।' स्वजन वर्ग ने खिन्न मन से कहा - 'यह कैसे हो सकता है ? पीड़ा को कैसे वांटा जा सकता है ?' सुलस वोल उठा - ' आप लोग मेरी पीड़ी का विभाग भी नहीं ले सकते तब मेरे पाप का विभाग कैसे ले सकेंगे ? मैं इस हिंसा को नहीं चला सकता, भले फिर यह पैतृकी हो । क्या यह आवश्यक है कि पिता अन्धा हो तो पुत्र भी अन्धा होना चाहिए ।' २. अभय का आयाम अर्जुन मालाकार आज बड़ी तत्परता से अपनी पुष्पवाटिका में पुष्प चुन रहा है । बंधुमती छाया की भांति उसके पीछे चल रही है। उनका मन बहुत उत्फुल्ल है । राजगृह के कण-कण में उत्सव अठखेलियां कर रहा है । उसका हर नागरिक सुरभि पुष्पों के लिए लालायित हो रहा है । 'आज पुष्पों का विक्रय प्रचुर मात्रा में होगा' - इस कल्पना ने अर्जुन के हाथों और पैरों में होड़ उत्पन्न कर दी । थोड़े समय में ही चारों करंडक पुष्पों से भर गए । मालाकार दंपति पुलकित हो उठा । अर्जुन पुष्पवाटिका में पुष्प चुनकर यक्ष की पूजा करने जाया करता था । मुद्गरपाणि उस प्रदेश का सुप्रसिद्ध यक्ष है । उसका आयतन पुष्पवाटिका से सटा हुआ है | अर्जुन यक्ष का भक्त है । यह भक्ति उसे वंश-परम्परा से प्राप्त है। राजगृह में ललिता नाम की एक गोष्ठी थी । उसके सदस्य गोष्ठिक कहलाते थे । उस दिन छह गोष्ठिक पुरुष यक्षायतन में क्रीड़ा कर रहे थे । अर्जुन अपनी
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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