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सततं जागरण
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महाशतक उपासना-गृह में धर्म की अराधना कर रहा था। उसकी पत्नी रेवती बहुत निर्मम और निर्दय थी। उसने महाशतक को विचलित करने का प्रयत्न किया । उसकी ध्यान-धारा विच्छिन्न नहीं हुई। उसका साधना-क्रम अविचल रहा। कुछ दिन बाद रेवती ने फिर वैसा प्रयत्न किया। इस बार महाशतक क्रुद्ध हो गया। उसने रेवती की भर्त्सना की। क्रोध के आवेश में कहा—'रेवती ! तुम इसी सप्ताह विशूचिका से पीड़ित होकर मर जाओगी। मृत्यु के पश्चात् तुम नरक में जन्म लोगी।'
रेवती भयभीत हो गई। वह रोग, मृत्यु और नरक का नाम सुन घबरा गई। शब्द-संसार में ये तीनों शब्द सर्वाधिक अप्रिय हैं। महाशतक ने एक साथ इन तीनों का प्रयोग कर दिया। वह सप्ताह पूरा होते-होते मर गई।
भगवान् महावीर राजगृह आए। भगवान् ने गौतम से कहा-'उपासक महाशतक ने अपनी पत्नी के लिए अप्रिय शब्दों का प्रयोग किया है। तुम जाओ और उससे कहो-समत्व की साधना में तन्मय उपासक के लिए अप्रिय शब्दों का प्रयोग करना उचित नहीं है । इसलिए तुम उसका प्रायश्चित्त करो।'
गौतम महाशतक के पास गए । भगवान् का संदेश उसे बताया। उसे अपने प्रमाद का अनुभव हुआ। उसने प्रायश्चित्त किया । अप्रमाद की ज्योति फिर प्रज्वलित हो गई। ___ आत्मा की विस्मृति के क्षण दुर्घटना के क्षण होते हैं। मानवीय जीवन में जितनी दुर्घटनाएं घटित होती हैं, वे सब इन्हीं क्षणों में होती हैं।
एक वार सम्राट् श्रेणिक का अन्तःपुर अविश्वास की आग से धधक उठा। सम्राट् को महारानी चेलना के चरित्र पर सन्देह हो गया। उसने क्रोध में अभिभूत होकर अभयकुमार को अन्तःपुर जलाने का आदेश दे दिया। सम्राट् निर्मम आदेश देकर भगवान् महावीर के समवसरण में चला गया।
भगवान् ने उसके प्रमाद को देखा । भगवान् ने परिषद् के बीच कहा-'संदेह बहुत बड़ा आवर्त है। उसमें फंसने वाली कोई भी नौका सुरक्षित नहीं रह पाती। आज श्रेणिक की नौका सन्देह के आवर्त में फंस गई है। उसे चेलना के सतीत्व पर संदेह हो गया है। मैं देखता हूं कि कितना निर्मल, कितना अवदात और कितना उज्ज्वल चरित्र है चेलना का ! फिर भी सन्देह का राहु उसे ग्रसने का प्रयास कर रहा है।'
सम्राट् का निद्रा-भंग हो गया। आंखें खुल गई। उसे अपने प्रमाद पर अनुताप हुआ। वह तत्काल राज-प्रासाद पहुंचा । अन्तःपुर का वैश्वानर अप्रमाद के जल से
१. तीर्थकर काल का दसवां वर्ष । २. उवासगदसामओ, १४१-५० ।