________________
सह-अस्तित्व और सापेक्षता
१८१
'भंते ! आप शाश्वत हैं या गतिशील ?'
'कालातीत चेतना की अपेक्षा मैं शाश्वत हूं. और त्रिकाल चेतना की अपेक्षा मैं गतिशील हूं - जो भूत में था, वह वर्तमान में नही हूं और जो वर्तमान में हूं, भविष्य में नहीं होऊंगा ।"
वह
३. भगवान् कौशाम्बी के चन्द्रावतरण चैत्य में विहार कर रहे थे ।" महाराज शतानीक की बहन जयन्ती वहां आई। उसने वंदना कर पूछा-
'भंते ! सोना अच्छा है या जागना अच्छा है ?'
'कुछ जीवों का सोना अच्छा है और कुछ जीवों का जागना अच्छा है ।' 'भंते ! ये दोनों कैसे ? '
'अधार्मिक मनुष्य का सोना अच्छा है । वह जागकर दूसरों को सुला देता है, इसलिए उसका सोना अच्छा है ।
'धार्मिक मनुष्य का जागना अच्छा है । वह जागकर दूसरों को जगा देता है, इसलिए उसका जागना अच्छा है ।'
"भंते ! जीवों का दुर्बल होना अच्छा है या सबल होना ?"
'कुछ जीवों का दुर्बल होना अच्छा है और कुछ जीवों का सबल होना अच्छा
है ।'
'भंते ! ये दोनों कैसे ?'
'अधार्मिक मनुष्य का दुर्बल होना अच्छा है । वह अधर्म से आजीविका कर दूसरों के दुःख का हेतु होता है, इसलिए उसका दुर्बल होना अच्छा है ।
'धार्मिक मनुष्य का सबल होना अच्छा है । वह धर्म से आजीविका कर दूसरों दुःख का हेतु नहीं होता, इसलिए उसका सबल होना अच्छा है ।'
'भंते ! जीवों का आलसी होना अच्छा है या क्रियाशील ?"
'कुछ जीवों का आलसी होना अच्छा है और कुछ जीवों का क्रियाशील होना अच्छा है ।'
'भंते ! ये दोनों कैसे ? "
'असंयमी का आलसी होना अच्छा है, जिससे वह दूसरों का अहित न कर
सके ।
'संयमी का क्रियाशील होना अच्छा है, जिससे वह दूसरों का हित साध सके । * ४. स्कंदक परिव्राजक श्रावस्ती में रहता था । भगवान् कथंजला में पधारे। वह भगवान् के पास आया । भगवान् ने कहा - 'स्कंदक ! तुम्हारे मन
१. भगवई, १८।२१६, २२० ।
२. तीर्थंकर काल का तीसरा वर्ष ।
३. भगवई, १२।५३-५८ ।
४. तीर्थंकर काल का ग्यारहवां वर्ष ।