SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 204
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८० मनुष्य युक्ति के अंचल में मनन का प्रयोग करता है । आग्रही मनुष्य आंख पर आग्रह का उपनेत्र चढ़ाकर सत्य को देखता है और अनाग्रही मनुष्य अनन्त चक्षु होकर सत्य को देखता है । I भगवान् महावीर का युग तत्त्व - जिज्ञासा का युग था । असंख्य जिज्ञासु व्यक्ति अपनी जिज्ञासा का शमन करने के लिए बड़े-बड़े आचार्यों के पास जाते थे । अपनेअपने आचार्यों के पास जाते ही थे पर यदा-कदा दूसरे आचार्यों के पास भी जाते थे । इन जिज्ञासुओं में स्त्रियां भी होती थीं । भगवान् महावीर ने अपने जीवनकाल में हज़ारों-हज़ारों जिज्ञासाओं का समाधान किया । उनके सामने सबसे बड़े जिज्ञासाकार थे, उनके ज्येष्ठ शिष्य इन्द्रभूति गौतम । महावीर की वाणी का बहुत बड़ा भाग उनकी जिज्ञासाओं का समाधान है । १. एक बार गौतम ने पूछा - 'भंते ! कुछ साधक कहते हैं कि साधना अरण्य में ही हो सकती है । इस विषय में आपका क्या मत है ?" 'गौतम ! मैं यह प्रतिपादन करता हूं कि साधना गांव में भी हो सकती है और अरण्य में भी हो सकती है, गांव में भी नहीं होती और अरण्य में भी नहीं होती ।' 'भंते ! यह कैसे ?' श्रमण महावीर 'गोतम ! जो आत्मा और शरीर के भेद को जानता है, वह गांव में भी साधना कर सकता है और अरण्य में भी कर सकता है । जो आत्मा और शरीर के भेद को नहीं जानता वह गांव में भी साधना नहीं कर सकता और अरण्य में भी नहीं कर सकता ।' जो साधक आत्मा को नहीं देखता, उसकी दृष्टि में ग्राम और अरण्य का प्रश्न मुख्य होता है । जो आत्मा को देखता है, उसका निवास आत्मा में ही होता है | इसलिए उसके सामने ग्राम और अरण्य का प्रश्न उपस्थित नहीं होता । यह तर्क उचित है कि यदि तुम आत्मा को देखते हो तो अरण्य में जाकर क्या करोगे ? यदि तुम आत्मा को नहीं देखते हो तो अरण्य में जाकर क्या करोगे ? १ २. सोमिल जाति से ब्राह्मण था, वैदिक धर्म का अनुयायी और वेदों का पारगामी विद्वान् । वह वाणिज्यग्राम में रहता था । भगवान् वाणिज्यग्राम में आए । द्विपलाश चैत्य में ठहरे । सोमिल भगवान् के पास आया। उसने अभिवादन कर पूछा- 'भंते ! आप एक हैं या दो ?' 1 'मैं एक भी हूं और दो भी हूं ।' 'भंते ! यह कैसे हो सकता है ? ' 'मैं' चेतन द्रव्य की अपेक्षा से एक हूं तथा ज्ञान और दर्शन की अपेक्षा से दो हूं।' १. आया । १४ ।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy