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सह-अस्तित्व और सापेक्षता
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बोला-'हाथी मूसल जैसा है।' चौथा बोला-'तुम भी सही नहीं हो, हाथी सूप जैसा है।' पांचवां बोला-'तुम सब झूठे हो, हाथी मोटी रस्सी जैसा है।' उन सबने अपने-अपने अनुभव के चित्र कल्पना के ढांचे में मढ़ लिए। अब एक रेखा भर भी इधर-उधर सरकने को अवकाश नहीं रहा। वे अपने-अपने चित्र को परम सत्य
और दूसरों के चित्र को मिथ्या बतलाने लगे। विवाद का कहीं अन्त नहीं हुआ। ___ एक आदमी आया। उसके आंखें थीं। उसने पूरा हाथी देखा था। वह कुछ क्षण अंधों के विवाद को सुनता रहा । फिर बोला-'भाई ! तुम लड़ते क्यों हो ?' उन्होंने अपनी सारी कहानी सुनाई और उससे अपने-अपने पक्ष का समर्थन चाहा। आगंतुक आदमी बोला-'तुम सब झूठे हो।' पांचों चिल्लाए-'यह कैसे हो सकता है ? हमने हाथी को छूकर देखा है।' आगंतुक बोला-'तुमने हाथी को नहीं छुआ, उसके एक-एक अंग को छुआ। चलो, तुम्हारा विवाद हाथी के पास चलकर समाप्त करता हूं।' वह उन पांचों को हाथी के पास ले आया । एक-एक अंग को छुआकर बोला___'तुम सच हो कि हाथी खंभे जैसा है, पर तुमने हाथी का पैर पकड़ा, पूरा हाथी नहीं पकड़ा। ___'तुम भी सच हो कि हाथी केले के तने जैसा है, पर तुमने हाथी की सूड पकड़ी, पूरा हाथी नहीं पकड़ा।
'तुम भी सच हो कि हाथी मूसल जैसा है, पर तुमने हाथो का दांत पकड़ा, पूरा हाथी नहीं पकड़ा।
'तुम भी सच हो कि हाथी सूप जैसा है, पर तुमने हाथी का कान पकड़ा, पूरा हाथी नहीं पकड़ा। __ 'तुम भी सच हो कि हाथी मोटी रस्सी जैसा है, पर तुमने हाथी की पूंछ पकड़ी, पूरा हाथी नहीं पकड़ा।'
'तुम अपनी-अपनी पकड़ को सत्य और दूसरों की पकड़ को मिथ्या बतलाते हो, इसलिए तुम सब झूठे हो। तुम अवयव को अवयवी में मिला दो, खण्ड को अखण्ड की धारा में बहा दो, फिर तुम सब सत्य हो।'
विश्व का प्रत्येक मूल तत्त्व अखण्ड है । परमाणु भी अखण्ड है और आत्मा भी अखण्ड है। किन्तु कोई भी अखण्ड तत्त्व खण्ड से वियुक्त नहीं है। महावीर ने सापेक्षता के सूत्र से अखण्ड और खण्ड की एकता को साधा। उन्होंने रहस्य का अनावरण इन शब्दों में किया-'जो एक को जान लेता है, वह सबको जान लेता है। सवको जानने वाला ही एक को जान सकता है।" "
आग्रही मनुष्य अपनी मान्यता के अंचल में युक्ति खोजता है और अनाग्रही
१. आयारो, ३१७४।