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________________ १७४ श्रमण महावीर "भंते ! या कहें मैं अस्ति हूं या कहें मैं नास्ति हूं। दोनों एक साथ कैसे हो सकते हैं ?' 'यदि दोनों एक साथ न हों तो मैं अस्ति भी नहीं हो सकता और नास्ति भी नहीं हो सकता।' _ 'भंते ! यह कैसे ?' 'यदि मेरा अस्तित्व मेरे चैतन्य से ही नहीं है, दूसरों के चैतन्य से भी है तो मैं अस्ति नहीं हो सकता। अस्ति हो सकता है समुदाय । और जब मैं अस्ति नहीं हो सकता तब नास्ति भी नहीं हो सकता।' 'तो क्या यह निश्चित है कि आप अपने ही चैतन्य से अस्ति हैं ?' 'हां, यह निश्चित है और एकान्ततः निश्चित है कि मैं अपने चैतन्य से ही अस्ति हूं।' 'भंते ! यह भी निश्चित है कि आप दूसरों के चैतन्य से अस्ति नहीं हैं ?' ___'हां, यह भी एकान्ततः निश्चित है कि मैं दूसरों के चैतन्य से अस्ति नहीं हूं। मैं दूसरों के चैतन्य से अस्ति नहीं हूं इसीलिए अपने चैतन्य से अस्ति हूं । इसीलिए मैं कहता हूं कि मैं अस्ति भी हूं और नास्ति भी हूं। अस्तित्व और नास्तित्व दोनों एक साथ रहते हैं। अस्तित्व-विहीन नास्तित्व और नास्तित्व-विहीन अस्तित्व कहीं भी प्राप्त नहीं होता।' _ 'भंते ! आपका अस्तित्व जैसे अस्तित्व में परिणत होता है, वैसे ही क्या नास्तित्व नास्तित्व में परिणत होता है ?' 'तुम ठीक कहते हो। मेरे अस्तित्व की धारा अस्तित्व की दिशा में और नास्तित्व की धारा नास्तित्व की दिशा में प्रवाहित होती रहती है।' 'भंते ! क्या अस्तित्व और नास्तित्व परस्पर-विरोधी नहीं हैं ?' 'नहीं हैं। दोनों सहभावी हैं । दोनों साथ में रहकर ही वस्तु को वास्तविकता प्रदान करते हैं।" ___ वस्तु के अनन्त पर्याय हैं, अनन्त कोण हैं। वस्तु के धरातल पर अनन्त कोणों का होना ही परम सत्य है । अनन्त कोणों का होना विरोध नहीं है । उनका हमारी बुद्धि की पकड़ में न आना विरोध प्रतीत होता है । तरंगित समुद्र का दर्शन निस्तरंग समुद्र के दर्शन से भिन्न होता है। निस्तरंग होना और तरंगित होना पर्याय है। इन दोनों पर्यायों के नीचे जो अस्तित्व है, वह पहले और पीछे-दोनों क्षणों में होता है--निस्तरंग पर्याय में भी होता है और तरंगित पर्याय में भी होता है। दूध दही हो गया। दही का पर्याय उत्पन्न हुआ। दूध का पर्याय नष्ट हो १. भगवती, १५१३३-१३८ ।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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