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________________ अस्तित्व और सापेक्षता १७५ गया। इन दोनों पर्यायों के नीचे जो अस्तित्व है, वह पहले और पीछे दोनों क्षणों में होता है - दूध पर्याय में भी होता है और दही पर्याय में भी होता है । न्यायिक मानते हैं कि आकाश नित्य है और दोनिया अनित्य है। बी मानते हैं कि दीपा भी नित्य है और आकाश भी अनित्य है । दीपशिखा का नित्य होना और बाकाल का अनित्य होना नैयायिक की दृष्टि में विरोध है । दीपशिखा का अनित्य और नित्य- दोनों होना बौद्ध की दृष्टि में विरोध है | महावीर ने सत्य को इन दोनों से भिन्न दृष्टि ने देखा है। उन्होंने कहादीपा को after कहा जाता है, यह नित्य भी है और आकाण को नित्य कहा जाता है, वह वनित्य भी है । नित्य और अनित्य परस्पर-विरोधी नहीं है। एक ही तने को दो अनिवार्य शाखाएं है। दीपशिखा प्रतिक्षण क्षीण होती जाती है, इसलिए नैयायिक और बौद्ध का उसे अनित्य मानना अनुचित नहीं है । आकान कभी भी समाप्त नहीं होता, इसलिए नैयायिक का उमे नित्य मानना भी अनुचित नहीं है। महावीर ने यह नहीं कहा कि दीपशिखा को अनित्य मानना अनुचित है। उनका अनित्य होना प्रत्यक्ष है, इसलिए उसे अनुचित कैसे कहा जा सकता है ? उन्होंने कहा- दीपशिखा को अनित्य ही मानना या नित्य न मानना अनुचित है। दीपशिखा एक पर्याय है । परमाणुओं का तंज प में होना दीपलिया है। समाप्त होने का अर्थ है- परमाणुओं के तेजस पर्याय की समाप्ति | वैजन का समाप्त होना परमाणुओं का नमाप्त होना की है। परमाणु यत है। वे जन पर्याय के होने पर भी होते हैं और उनके न होने पर भी होते है। 1 नीलम ने पूछा- 'भंते! जीव पाश्वत है या अनार ?" भगवान् ने कहा- 'गोतम ! जीव शास्वत भी है और भी है। ते ! दोनों कैसे ?" का 'पको afat के तल में जो चेतना का पिर मातमाग भाग्य है। उस गागर में ऊर्मियां उन्मज्जित और निजि होती रानी में है।जय का अस्ति नागर यों नहीं है। उन नहीं है और गर औरत क होती और के तन में निरोषि त केह नट सबने कि जीवन | देवा के नहीं भी है । पर समते है कि है में, इसे ही कभी और जो नही है, और के दो क्षेत्री
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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