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श्रमण महावीर
मांसाहार के निषेध का सबसे प्राचीन प्रमाण जैन साहित्य के अतिरिक्त किसी अन्य साहित्य में है, ऐसा अभी मुझे ज्ञात नहीं है।
आहार जीवन का साध्य नहीं है, किन्तु उसकी उपेक्षा की जा सके वैसा साधन भी नहीं है। यह मान्यता की जरूरत नहीं, किन्तु जरूरत की मांग है।
शरीर-शास्त्र की दृष्टि से इस पर सोचा गया है पर इसके दूसरे पहलू बहुत कम छुए गए हैं। यह केवल शरीर पर ही प्रभाव नहीं डालता, उसका प्रभाव मन पर भी होता है। मन अपवित्र रहे तो शरीर की स्थूलता कुछ नहीं करती, केवल पाशविक शक्ति का प्रयोग कर सकती है। उससे सब घबराते हैं। ___मन शान्त और पवित्र रहे, उत्तेजनाएं कम हों-यह अनिवार्य अपेक्षा है । इसके लिए आहार का विवेक होना बहुत जरूरी है । अपने स्वार्थ के लिए विलखते मूक प्राणियों की निर्मम हत्या करना क्रूर कर्म है। मांसाहार इसका बहुत बड़ा निमित्त है।
महावीर ने आहार के समय, माना और योग्य वस्तुओं के विषय में बहुत गहरा विचार किया। रात्रि-भोजन का निषेध उनकी महान देन है।
भगवान् ने मिताशन पर बहुत बल दिया। मद्य, मांस, मादक पदार्थ और विकृति का वर्जन उनकी साधना के अनिवार्य अंग हैं । ८. यज्ञ : समर्थन या रूपान्तरण
हमारे इतिहासकार कहते हैं-महावीर ने यज्ञ का प्रतिवाद किया। मैं इससे सहमत नहीं हूं। मेरा मत है-महावीर ने यज्ञ का समर्थन या रूपान्तरण किया था। अहिंसक यज्ञ का विधान वैदिक साहित्य में भी मिलता है। यदि आप उसे महावीर से पहले का मान लें तो मैं कहूंगा कि महावीर ने उस यज्ञ का समर्थन किया। और यदि आप उसे महावीर के बाद का माने तो मैं कहूंगा कि महावीर ने यज्ञ का रूपान्तरण किया-हिंसक यज्ञ के स्थान पर अहिंसक यज्ञ की प्रतिष्ठा की। ____ महावीर का दृष्टिकोण सर्वग्राही था। उन्होंने सत्य को अनन्त दृष्टियों से देखा । उनके अनेकान्त-कोप में दूसरों की धर्म-पद्धति का आक्षेप करने वाला एक भी शब्द नहीं है । फिर वे यज्ञ का प्रतिवाद कैसे करते ? __उनके सामने प्रतिवाद करने योग्य एक ही वस्तु थी। वह थी हिंसा । हिंसा का उन्होंने सर्वत्र प्रतिवाद किया, भले फिर वह श्रमणों में प्रचलित थी या वैदिकों में। उनकी दृष्टि में श्रमण या वैदिक होने का विशेष अर्थ नहीं था । विशेष अर्थ था अहिंसक या हिंसक होने का। उनके क्षात्र हृदय पर अहिंसा का एकछत्र साम्राज्य था।
उस समय भगवान के शिष्य अहिंसक यज्ञ का संदेश जनता तक पहुंचा रहे