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क्रान्ति का सिह्नाद
हिंसा करते हैं । '
मांसाहार के समर्थन में दिए जाने वाले इस तर्क की आयु ढाई हजार वर्ष पुरानी तो अवश्य ही है । इस तर्क की शरण गृहस्थ ही नहीं, मांसाहारी संन्यासी 'भी लेते थे । महावीर ने इस तर्क को अस्वीकार कर मांसाहार का प्रवल विरोध किया ।"
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उस विरोध के पीछे कोई वाद नहीं, किन्तु करुणा का अजस्र प्रवाह था । उनके अन्तःकरण में प्राणि-मात्र के प्रति करुणा प्रवाहित हो रही थी । पशु, पक्षी और वनस्पति आदि सूक्ष्म जीवों के साथ उनका उतना ही प्रेम था, जितना कि मनुष्य के साथ। उनके प्रेम में किसी भी प्राणी के वध का समर्थन करने का कोई अवकाश नहीं था । उन्हें प्रिय थी अहिंसा और केवल अहिंसा । किन्तु मानव का जगत् उनकी भावना को कैसे स्वीकार कर लेता ? आखिर यह जीवन का प्रश्न था । जीना है तो खाना है । खाए बिना जीवन चल नहीं सकता । 'अन्नं वै प्राणा:'- -अन्न ही प्राण है, यह धारणा समाजमान्य हो चुकी थी । भगवान् ने भोजन की समस्या पर दृष्टिकोणों से विचार किया । एक दृष्टिकोण अनिवार्यता का था और दूसरा संकल्प का । भगवान् ने असम्भव तत्त्व का प्रतिपादन नहीं किया ।
वनस्पति जीवन की न्यूनतम अनिवार्यता है । मांसाहारी लोग वनस्पति खाते हैं पर शाकाहारी मांस नहीं खाते । मांसाहार वनस्पति की भांति न्यूनतम अनिवार्यता नहीं है । उसके पीछे संकल्प की प्रेरणा है । भगवान् की अहिंसा का पहला सूत्र है — अनिवार्य हिंसा को नहीं छोड़ सको तो संकल्पी हिंसा को अवश्य छोड़ो। इसी सूत्र के आधार पर मांसाहार के प्रतिषेध का स्वर अर्थवान् हो गया ।
आज विश्व भर में जो शाकाहार का आंदोलन चल रहा है, उसका मूल जैन परम्परा में ढूंढा जा सकता है । ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र - सभी जातियों में मांसाहार प्रचलित था । वैदिक धर्म में मांसाहार निषिद्ध नहीं था । वौद्ध धर्म के अनुयायी श्रमण परम्परा में होकर भी मांसाहार करते थे । मांन न खाने का आन्दोलन केवल जैन परम्परा ने चला रखा था। उसका नेतृत्व महावीर कर रहे थे ।
महावीर ने निर्ग्रन्थों के लिए मांसाहार का निषेध किया । व्रती श्रावक भी मांस नहीं खाते थे । भगवान् ने नरक में जाने के चार कारण बताए। उनमें एक कारण है मांसाहार । मांसाहार के प्रति महावीर की भावना का यह मूर्त प्रतिविम्ब
है ।
महावीर का मांसाहार - विरोधी आन्दोलन धीरे-धीरे बल पकड़ता गया । उससे अनेक धर्म-सम्प्रदाय और अनेक जातियां प्रभावित हुई और उन्होंने मांसाहार छोड़ दिया ।
१. गट, २२६५२ ५५