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________________ १४० श्रमण महावीर होता था । यदि धर्म-परिवर्तन का अर्थ जाति-परिवर्तन होता तो समस्या बहुत गम्भीर बन जाती। किन्तु एक ही भारतीय जाति के लोग अनेक धर्मों का अनुगमन कर रहे थे, इसलिए उनके धर्म-परिवर्तन का प्रभाव केवल वैचारिक स्तर पर होता । जातीय स्तर पर उसका कोई प्रभाव नहीं होता। विजयघोष के मन में वैचारिक भेद उभर आया। उसने दर्प के साथ कहा'मुने ! इस यज्ञ-मंडप में तुम भिक्षा नहीं पा सकते । कहीं अन्यत्र चले जाओ। यह भोजन वेदविद् और धर्म के पारगामी ब्राह्मणों के लिए बना है।' .. मुनि बोले---'विजयघोष ! मुझे भिक्षा मिले या न मिले, इसकी मुझे कोई चिन्ता नहीं। मुझे इसकी चिन्ता है कि तुम ब्राह्मण का अर्थ नहीं जानते।' विजयघोष-'इसका अर्थ जानने में कौन-सी कठिनाई है ? जो ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न ब्राह्मण के कुल में जन्म लेता है, वह ब्राह्मण है।' मुनि-~-'मैं तुम्हारे सिद्धान्त का प्रतिवाद करता हूं। जाति जन्मना नहीं होती, वह कर्मणा होती है मनुष्य कर्म से ब्राह्मण होता है, कर्म से क्षत्रिय । कर्म से वैश्य होता है और कर्म से शूद्र।" विजयघोष-'ब्राह्मण का कर्म क्या है ?' । मुनि-'ब्राह्मण का कर्म है-ब्रह्मचर्य । जो व्यक्ति ब्रह्म का आचरण करता है, वह ब्राह्मण होता है। जैसे जल में उत्पन्न कमल उसमें लिप्त नहीं होता, वैसे ही जो मनुष्य काम में उत्पन्न होकर उसमें लिप्त नहीं होता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। जो राग, द्वेप और भय से अतीत होने के कारण मृष्ट स्वर्ण की भांति प्रभास्वर होता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।" 'जो अहिंसक, सत्यवादी और अकिंचन होता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।" १. उत्तरज्झयणाणि, २५॥३१ : फम्मुणा बम्भणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तिओ। वइस्सो कम्मणा होइ, सुद्दो हवइ कम्मुणा । २. उत्तरज्झयणाणि, २२।३० : वम्मचेरेण वम्भणो। ३. उत्तरज्झयणाणि, २५।२६ : जहा पोमं जले जायं, नोवलिप्पइ वारिणा। एवं अलित्तो कामेहि, तं वयं वूम माहणं ।। ४. उत्तरायणाणि, २०२१: जायस्वं जहामठें, निदन्तमलपावगं । रागबोसमयाईयं, तं वयं वूम माहणं ।। ५. उत्तरग्सयपाणि २५१२२,२३,२७ ।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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