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________________ १३८ श्रमण महावीर स्वर भी पूरी शक्ति से गूंजने लगा। श्रमणों का स्वर विषमता से व्यथित मानस को वर्षा की पहली फुहार जैसा लगा। इसका स्वागत उच्च गोत्रीय लोगों ने भी किया । क्षत्रिय इस आन्दोलन में पहले से ही सम्मिलित थे । ब्राह्मण और वैश्य भी इसमें सम्मिलित होने लगे । यह धर्म का आन्दोलन एक अर्थ में जन-आन्दोलन बन गया। इसे व्यापक स्तर पर चलाना भिक्षुओं का काम था। भगवान् बड़ी सतर्कता से उनके संस्कारों को मांजते गए। एक बार कुछ मुनियों में यह चर्चा चली कि मुनि होने पर शरीर नहीं छूटता, तब गोत्र कैसे छूट सकता है ? यह बात भगवान् तक पहुंची। तब भगवान् ने मुनि-कुल को बुलाकर कहा-'आर्यो ! तुमने सर्प की केंचुली को देखा है ?' 'हां, भंते ! देखा है।' 'आर्यो ! तुम जानते हो, उससे क्या होता है ?' 'भंते ! केंचुली आने पर सर्प अन्धा हो जाता है ?' 'आर्यो ! केंचुली के छूट जाने पर क्या होता है ?' "भंते ! वह देखने लग जाता है ।' 'आर्यो ! यह गोत्र मनुष्य के शरीर पर केंचुली है। इससे मनुष्य अन्धा हो जाता है । इसके छूटने पर ही वह देख सकता है। इसलिए मैं कहता हूं कि सर्प जैसे केंचुली को छोड़ देता है, वैसे ही मुनि गोत्र को छोड़ दे । वह गोत्र का मद न करे। किसी का तिरस्कार न करे ।' ५. भगवान् के संघ में अभिवादन की एक निश्चित व्यवस्था थी। उसके अनुसार दीक्षा-पर्याय में छोटे मुनि को दीक्षा-ज्येष्ठ मुनि का अभिवादन करना होता था । एक मुनि के सामने यह व्यवस्था समस्या बन गई । वह राज्य को छोड़कर मुनि वना था। उसका नीकर पहले ही मुनि बन चुका था। राजपि की आंखों पर मद का आवरण आ गया। उसने उस नौकर मनि का अभिवादन नहीं किया। यह बात भगवान् तक पहुंची । भगवान् ने मुनि-परिपद् को आमंत्रित कर कहा, 'सामाजिक व्यवस्था में कोई सार्वभौम सम्राट होता है, कोई नौकर और कोई नौकर का भी नौकर । किन्तु मेरे धर्म-संघ में दीक्षित होने पर न कोई सम्राट रहता है और न कोई नोकर। वे बाहरी उपाधियों से मुक्त होकर उस लोक में पहंन जाते हैं, जहां मब गम हैं, कोई विपम नहीं है। फिर अपने दीक्षा-ज्येष्ठ का - १. मगढी, १३१२३,२४ : तपम वजनाप से रयं, इ. मंगाय मणी ग मजई। गोषण माग, महामेयारी अमिहंगिणी ॥ कोरिपरा, गंगारे परिवनई महं। पिका पादिया, बट मंगाय मी मनाई ।।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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