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________________ गंध-व्यवस्था १११ नामुदायिकता भगवान महावीर वैयक्तिक स्वतन्त्रता के महान् प्रवक्ता और नामुदायिक मूल्यों के महान संस्थापक थे। उनके सापेक्षवाद का मूत्र घा-व्यक्ति-मापेक्ष, समुदाय और समुदाय-सापेक्ष व्यक्ति । स्वतन्त्रता और संगठन दोनों सापेक्ष सत्य हैं । एक की अवहेलना करने का अधी, दोनों की अवहेलना करना । इस सत्य को नियुक्तिकार ने इन भाषा में प्रस्तुत किया है-'जो एक मुनि की अवहेलना करता है, वह समूचे नंघ की अवहेलना करता है और जो एक मुनि की प्रशंसा करता है, वह नमूचे नंघ की प्रगंगा करता है।" चि, संस्कार और विचार-ये व्यवस्था के सूत्र नहीं बन सकते। ये व्यक्तिगत तत्त्व हैं। दीक्षा-पर्याय यह सामुदायिक तत्त्व है। भगवान ने इमी तत्व के आधार पर व्यवस्थाओं का निर्माण किया । मेघकुमार की घटना से उस स्थापना की पुष्टि हो जाती है। मेषकुमार भगवान के पाम दीक्षित हआ। रात के समय सब माधुओं ने दीक्षा पर्याय के काम से सोने के स्थान का संविभाग किया। मेपकुमार नबसे छोटा पा, मनिए उसे दरवाजे के पास सोने का स्थान मिला। भगवान् के नाध बहुत साधु थे । वे देहनिता-निवारण, स्वाध्याय, ध्यान आदि प्रयोजनों से इधर-उधर जाने-आने लगे। कोई मेघकुमार के हाथ को छू जाता, यो पर की और कोई सिर को। इस हलचल में उसे सारी रात नीद नहीं आई। रातमा हर क्षण उसने जागते-जागते बिताया। गजमार, कोमल शैया पर सोया हुआ और राज-प्रामाद के विमान प्रांगण मन हुआ । कठोर जया, दरवाजे के पास संकरा स्थान और आने-माने वाले माधुओं ये परो-हाधों का स्वर्ण । इन विपरीत रिपति ने मेघयुमार को विचलित कर दिया। वह नोनने लगा--'मैं महाराज श्रेणिकका पुद्र और महारानी धारिणी मनपा । मैं अपने माता-पिता को बहुत प्रिय पा। जब मैं घर में था तव Amir कितना आदर करते थे? मुझे पूछते थे। मेरा नकार-सम्मान करते मोर और हेतु बतलाते थे । मीठे बोल बोलते थे। आज मैं माधु हो गया। नमो न मेरा आदर पिया. न मुझे पूरा, न मेरा गलार-मम्मान किया, श न पर:५६१.५२४ । रिनि म हारिवाठि ।। म न पा ति ཎ ཙཝཱ ཙན ལས། ཏ: ; १. :
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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