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________________ ११० श्रमण महावीर साधुत्व विकसित है वह साधु हो या साध्वी, सबके लिए वंदनीय है । दूसरी दृष्टि के अनुसार भगवान् ने व्यवस्था की-दीक्षा-पर्याय में छोटा साधु या साध्वी दीक्षापर्याय में ज्येष्ठ साधु या साध्वी का अभिवादन करे। साधु-साध्वियों के परस्पर अभिवादन के विषय में भगवान ने क्या निर्देश दिया, यह उनकी वाणी में उपलब्ध नहीं है । उत्तरवर्ती साहित्य में मिलता है कि सौ वर्ष की दीक्षित साध्वी आज के दीक्षित साधु को वंदना करे। क्योंकि धर्म का प्रवर्तक पुरुष है, धर्म का उपदेष्टा पुरुष है, पुरुष ज्येष्ठ है; लौकिक पथ में भी पुरुष प्रभु होता है, तब लोकोत्तर पथ का कहना ही क्या ? उस समय लोकमान्यता के अनुसार पुरुष की प्रधानता थी। बहुत सारे धामिक संघ भी पुरुष को प्रधानता देते थे। बौद्ध साहित्य से यह तथ्य स्पष्ट होता है। महाप्रजापति गौतमी ने आयुष्यमान आनन्द का अभिवादन कर कहा, 'भते आनन्द ! मैं भगवान से एक वर मांगती हैं। अच्छा हो भंते ! भगवान् भिक्षुओं और भिक्षुणियों में परस्पर दीक्षा-पर्याय की ज्येष्ठता के अनुसार अभिवादन, प्रत्युत्थान, हाथ जोड़ने और सत्कार करने की अनुमति दे दें।' आनन्द ने यह बात बुद्ध से कही। तब भगवान बुद्ध ने कहा, 'आनन्द ! इसका जगह नहीं, इसका अवकाश नहीं कि तथागत स्त्रियों को अभिवादन, प्रत्युत्थान, हाथ जोड़ने और सत्कार करने की अनुमति दें।' 'आनन्द ! जिनका धर्म ठीक से नहीं कहा गया है, वे तीथिक (दूसरे मतवाल साधु) भी स्त्रियों को अभिवादन, प्रत्युत्थान, हाथ जोड़ने और सत्कार करने का अनुमति नहीं देते तो भला तथागत स्त्रियों को अभिवादन, प्रत्युत्थान, हाथ जोड़ने और सत्कार करने की अनुमति कैसे दे सकते हैं ?' तव भगवान् ने इसी सम्बन्ध में इसी प्रकरण में धार्मिक कथा कह, भिक्षुओं को सम्बोधित किया-'भिक्षुओ ! स्त्रियों का अभिवादन, प्रत्युत्थान, हाथ जोड़ना और सत्कार नहीं करना चाहिए, जो करे उसे उत्कट का दोष हो।" भगवान् महावीर का दृष्टिकोण स्त्रियों के प्रति बहुत उदार था। साधना के क्षेत्र में उन्हें पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त थी। समता का प्रयोग स्त्री-पुरुप-दोनों पर समान रूप से चलता था। अतः यह कल्पना करने को मन ललचाता है कि भगवान् ने अभिवादन की स्वतन्त्र व्यवस्था की। उसका आशय था १. दीक्षा-पर्याय में छोटा साधु ज्येष्ठ साधु का अभिवादन करे । २. दीक्षा-पर्याय में छोटी साध्वी ज्येष्ठ साध्वी का अभिवादन करे । १. दसवेमालियं, ६।३।३ । २. उपदेशमाला, श्लोक १५, १६ । ३. विनयपिटक, पृ० ५२२ ।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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