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काल बाकी नही होना चाहिये तो उस समय में यह अनादि काल का मोहनिद्रा में सोया हुवा ससारी जीव जगाया हुवा जाग सकता है इसी का नाम काललब्धि है इस काललब्धि के होने पर उपयुक्त चार लब्धियां प्राप्त करक यह जीव सम्यक्त्व ग्रहण योग्य होता है । और नहीं तो फिर जिसका जिस समय मोक्ष होना है उससे एक मुहूर्त पहले भी मिथ्वात्वी से सम्यक्त्वी वन कर कर्मनाशकर वह सिद्ध हो जाता है। शङ्का-- तब तो फिर समयका ही मूल्य रहा, आत्माके पुरुषार्थ
या उपर्युक चारलब्धियोंके होनेकी क्या आवश्यकता है ? उत्तर- जिस समय भी जिस किसी को मुक्ति प्राप्त होगी यह उससे पूर्वमें उपर्युक्त लब्धियों की सहायता से अपने पौरुष को व्यक्त करते हुये सम्यक्त्व लाभ कर क्रमश. उपयोग को निर्मल बनाने से होगी। जैसे मानलो कि दश जीव एक साथ मुक्ति पाने वाले हैं वे दशा ही एकसौ एकसौ वर्ष की अनपवलं आयु लेकर एक साथ ही जन्म भी मनुप्य का ले चुके हैं जिन्होंने कि पहले कहीं सम्यक्त्व नहीं प्राप्तकर पाया है । वो जबतक कि आठ वर्षके नही होंगे उसके पहले तो कोई भी न तो सम्यक्त्व ही प्राप्त कर सकेगा और न मुनि ही बन सकेगा। परन्तु आठवर्षपूर्ण होते ही उन मे से एक वो गुरु के पास पहुंच कर उनके उपदेशलाभ कर सम्यग्दर्शन ग्रहण करके संयमी मुनि भी चन कर कुछ ही देर बाद क्षपकोणी माडकर घाति कर्मों का नाश मी कर के केवल ज्ञानो बन बैठता है। दूसरा उसी समय