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की भी अनेकवार हो जाया करती है परन्तु सम्यक्त्व प्रामि नही हो पाती । क्यो कि यह सब सम्यक्त्व प्राप्ति के लिये अविकल कारण न हो कर विकल कारण है । इन सबके साथ साथ कुछ बात और भी है जिसकाकि होना भी सम्यक्त्वोत्पत्ति के लिये जरूरी है जो कि आगे बताई जा रही हैचेत्पुद्गला परिवर्तकालोऽ शिष्यतेऽनादितयाशयालो: । ब्धि युजोजनस्य क्षणोमवेञ्जागरणायशस्यः ।२७/
अर्थात्-अर्द्धपुद्गल परिवर्तन यह एक जैनागमसम्मतपारिभाषिक शब्द है जो कि काल विशेष का नाम है जिसमें असंख्यात कल्पकाल बीत जाते है और बास कोडाकोडी सागर का एक कल्पकाल होता है । दो हजार कोश गहरे और दो हजार कोश चोड़े लम्बे गढ्ढे मे कैंची से जिनका दूसरा भाग न हो सके ऐसे मैंट के बालों को भरना जितने वाल उसमें समावें उनमे से सौ सौ वर्ष बीतने पर एक एक बाल निकलना तो वे सब निकल चुके उतने काल को व्यवहार पल्य कहते हैं व्यवहार पल्य से असंख्यात गुणा उद्धारपल्य और उद्धारपल्य से असंख्यातगुणा श्रद्धापल्य होता है एव दश कोडाकोडीपल्यों का एक सागर होता है । ऐसा जैन सिद्धान्त प्रवेशिका में लिखा हुवा है । अस्तु । यह अर्द्धपुद्गल परिवर्तनकाल, मुमुक्ष के संसार परिभ्रमण में से जब कि बाकी रहे जो कि उसके भूतपूर्व परिभ्रमणरूप समुद्रका एक बून्दसमान है इससे अधिक