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या उससे कुछ समय बाद सम्यग्दर्शन प्राप्त करके मुनि भी वन जाता है किन्तु केवलज्ञान नही कर पाता, कुछ वर्षो बाद मे केवली बन पाता है तीसरा सम्यग्दर्शन को तो प्राप्त कर लेता है किन्तु जवान अवस्था तक गृहस्थ अवस्था में राज्यपाद भोग कर फिर मुनि बनता है और मुनिबन ने के अनन्तर ही केवली भी बन जाता है । चोथा सम्यग्दृप्टि बन कर कुछ दिन के वाद कुमार्गरत हो जाता है मगर फिर वापिस सुधर कर मुनि बन जाता है एवं केवली बन कर मोक्ष पाता है। पांचवां गृहस्थदशा मे तो सम्यग्दृष्टि सुशील रहता है किन्तु मुनि होने के बाद भ्रष्ट होजाता है सो जाकर अन्त मे वापिस सलट पाता है । छटा अन्त समय तक सद्गृहस्थ रह वर ठीक अन्त समय में मुनि बनता है और केवल ज्ञानी । सातवां अन्त समय तक भी व्यसनों में फंसा रह कर सिर्फ मरण के एक मुहूर्त पहले सम्यग्दृष्टि और मुनि भी बन कर केवली भी तभी बन लेता है । इत्यादि रूप से उनमे जो चिचित्रता होती है वह उनकी इतर लब्धियों की विशेषता और पुरुषार्थ बिशेप के ही तो कारण होती है । अस्तु । काल लब्धि और उपर्युक्त चारो धियो को भी प्राप्त करके जब यह जीव सम्यक्त्व के सम्मुख होता है तब क्या कुछ होता हूं सो बताते हैं -
सूर्योदयात्पूमिव प्रभातः सम्यक्त्वतः प्राक्करणाख्यतातः प्रवर्तते तेन तमोहतिर्वाऽतोऽन्तमुहूर्ताचदहस्पतिर्वा । २८