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________________ : २२: भिक्षु-सूत्र ( २८८ ) जो जातपुत्र-भगवान महावीर के प्रवचनो पर श्रद्धा रखकर छ काय के जीवो को अपनी आत्मा के समान मानता है, जो अहिंसा आदि पांच महावतो का पूर्ण रूप से पालन करता है, जो पांच प्रास्त्रवो का सवरण अर्थात् निरोध करता है, वही भिक्षु है। (२८६) जो सदा क्रोध, मान, माया और लोभ-चार कपायो का परित्याग करता है, जो नानी पुरुषो के वचनो पर दृढविश्वासी रहता है, जो चाँदी, सोना आदि किसी भी प्रकार का परिग्रह नही रखता, जो गृहस्यों के साथ कोई भी सासारिक स्नेह-सम्बन्ध नही जोडता, वही भिक्षु है। ( २६०) जो सम्यग्दर्णी है, जो कर्तव्य-विमूढ नही है, जो ज्ञान, तप और सयम का दृढ श्रद्धालु है, जो मन, वचन और शरीर को पाप-पथ पर जाने से रोक रखता है, जो तप के द्वारा पूर्व-कृत पाप-कर्मों को नष्ट कर देता है, वही भिक्षु है।
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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