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________________ : २१: ब्राह्मण-सूत्र ( २७४ ) जो भानेवाले स्नेही जनो मे आसक्ति नहीं रखता, जो जाता हुमा शोक नहीं करता, जो आर्य-वचनो म सदा आनन्द पाता है, उसे हम ब्राह्मण कहते है। (२७५ ) ___ जो अग्नि में डालकर शुद्ध किये हुए और कसौटी पर कसे हुए सोने के समान निर्मल है, जो राग, द्वेष तथा भय से रहित है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। (२७६ ) जो तपस्वी है, जो दुवला-पतला है, जो इन्द्रिय-निग्रही है, उग्र तप साधना के कारण जिसका रक्त और मास भी सूख गया है, जो शुद्धवती है, जिसने निर्वाण (भात्मशान्ति) पा लिया है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। (२७७ ) __ जोस्थावर, जगम सभी प्राणियो को भलीभांति जानकर, उनकी तीनों ही प्रकार से कभी हिंसा नहीं करता, उसे हम ब्राह्मण __मन, वाणी और शरीर से; अथवा करने, कराने और अनुमोदन से।
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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