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: १७: पण्डित-सूत्र
( २१७ ) पण्डित पुरुष को चाहिए कि वह ससार-भ्रमण के कारणरूप दुष्कर्म-पागो का भली भांति विचार कर अपने आप स्वतन्त्ररूप से सत्य को सोज करे, और सब जीवो पर मंत्रीभाव रखे।
(२१८ ) जो मनुष्य सुन्दर और प्रिय भोगो को पाकर भी पीठ फेर लेता है, सब प्रकार से स्वाधीन भोगो का परित्याग कर देता है, वही सच्चा त्यागी कहलाता है।
(२१६ ) जो मनुष्य किसी परतत्रता के कारण वस्त्र, गन्व, अलकार, स्त्री और शयन आदि का उपभोग नही कर पाता, वह सच्चा त्यागी नहीं कहलाता।
(२२० ) जो बुद्धिमान मनुष्य मोहनिद्रा मे सोते रहनेवाले मनुष्यो के बीच रहकर ससार के छोटे-बड़े सभी प्राणियो को अपनी आत्मा के समान देसे, इस महान् विश्व को प्रशाश्वत जाने, सर्वदा अप्रमत्त भाव से संयमाचरण में रत रहे वही मोक्षगति का सच्चा अधिकारी है।