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महावीर-वाणी
( २२१ ) जे ममाइप्रमई जहाइ, से जहाइ ममाइभ । से हु विट्ठभए मुणी, जस्स नस्थि ममाइ ॥५॥
( २२२ ) जहा कुम्मे सभंगाई, सए देहे समाहरे। एवं पावाई मेहावी, अन्झप्पेण समाहरे ॥६॥
( २२३ ) जो सहस्सं सहस्साणं, मासे मासे गवं दए। तस्स वि संजमो सेयो अविन्तस्स वि किंचण ॥७॥
( २२४ ) नाणस्स सम्बस्स पगासणाय,
अनाणमोहस्स विवज्जणाए । रागस्स दोसस्स य संखएणं, एगन्तसोक्खं समुवेई मोक्वं ॥॥
( २२५ ) तस्सेस मग्गो गुरुविद्धसेवा,
विवज्जणा बालजणस्स दूरा। समाय एगन्तनिसेवणा य,
सुत्तत्थसंचिन्तणया घिई या