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काम-सूत्र नहीं है । भोग-विलास के साधनो से रहित पुरुष को लोग वैसे ही छोड़ देते है, जैसे क्षीणफल वृक्ष को पक्षी।
(११) मानव-जीवन नश्वर है, उसमें भी अपनी आयु तो बहुत ही परिमित है, एकमात्र मोक्ष-मार्ग ही अविचल है, यह जानकर कामभोगो से निवृत्त हो जाना चाहिए।
( १८२ ) हे पुरुप | मनुष्यो का जीवन अत्यन्त अल्प है-क्षणभगुर है, प्रत शीघ्र ही पापकर्म से निवृत्त हो जा। ससार में आसक्त तथा काम-भोगो से मूच्छित असयमी मनुष्य बार-बार मोह को प्राप्त होते रहते है।
(१८३ ) समझो, इतना क्यो नही समझते ? परलोक में सम्यक् बोधि का प्राप्त होना बड़ा कठिन है। बीती हुई रात्रियों कभी लौटकर नहीं आती। मनुष्य-जीवन का दोवारा पाना आसान नहीं।
( १९४) काम-भोग वडी मुश्किल से छूटते है, अधीर पुरुप तो इन्हें सहसा छोड़ ही नहीं सकते। परन्तु जो महाव्रतो-जैसे सुन्दर व्रतो के पालन करनेवाले साधुपुरुष है, वे ही दुस्तर भोग-समुद्र को तैरकर पार होते है, जैसे-व्यापारी वणिक समुद्र को।