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________________ अप्रमाद-सूत्र से-अधिक संयम-धर्म की साधना के लिए कर लेना चाहिए। वाद में जव वह विल्कुल ही अशक्त हो जाये, तव विना किसी मोहममता के मिट्टी के ढेले के समान उसका त्याग कर देना चाहिए। जैसे शिक्षित (सघा हुआ) तथा कवचधारी घोडा युद्ध में विजय प्राप्त करता है, उसी प्रकार विवेकी मुमुक्ष भी जीवन-सग्राम में विजयी वनकर मोक्ष प्राप्त करता है। जो मुनि दीर्घकाल तक अप्रमत्तरूप से सयम-धर्म का आचरण करता है, वह शीघ्रातिशीघ्र मोक्ष-पद पाता है। (११८ ) शाश्वतवादी लोग कल्पना बांधा करते है कि 'सत्कर्म-साधना की अभी क्या जल्दी है, आगे कर लेंगे?' परन्तु यो करते-करते भोग-विलास में ही उनका जीवन समाप्त हो जाता है, और एक दिन मृत्यु सामने आ खड़ी होती है, शरीर नष्ट हो जाता है। अन्तिम समय में कुछ भी नहीं बन पाता; उस समय तो मूर्ख मनुष्य के भाग्य में केवल पछताना ही शेष रहता है। (११६ ) मात्म-विवेक कुछ झटपट प्राप्त नही किया जाता-इसके लिए तो भारी साधना की आवश्यकता है। महर्षि जनो को बहुत पहले से ही सयम-पथ पर दृढता के साथ खडे होकर, काम-भोगो का
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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