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विनय-सूत्र
(८२-८३ ) इन आठ कारणो से मनुष्य शिक्षाशील कहलाता है
हर समय हंसनेवाला न हो, सतत इन्द्रिय-निग्रही हो, दूसरो के मर्म को भेदन करनेवाले वचन न बोलता हो, सुशील हो, दुराचारी न हो, रसलोलुप न हो, सत्य मे रत हो, क्रोधी न होशान्त हो।
(६४) जो गुरु की आज्ञा पालता है, उनके पास रहता है, उनके इगितो तथा प्राकारो को जानता है, वही शिष्य विनीत कहलाता है।
(८५-८८ ) नीचे के पन्द्रह कारणो से वुद्धिमान मनुष्य सुविनीत कहलाता है
उद्धत न हो-नम्र हो, चपल न हो-स्थिर हो; मायावी न हो-सरल हो; कुतूहली न हो-गंभीर हो, किसीका तिरस्कार न करता हो, क्रोध को अधिक समय तक न रखता हो-शीघ्र ही शान्त हो जाता हो, अपने से मित्रता का व्यवहार रखनेवालो के प्रति पूरा सद्भाव रखता हो; शास्त्रो के अध्ययन का गर्व न करता हो, किसीके दोपो का भडाफोड़ न करता हो; मित्रो पर क्रोधित न होता हो; अप्रिय मित्र की भी पीठ-पीछे भलाई ही करता हो, किसी प्रकार का झगडा-फसाद न करता हो बुद्धिमान हो, अभिजात अर्थात् कुलीन हो, लज्जाशील हो, एकान हो।