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महावीर-वाणी ( ५२-५३ )
अह अहिं गणेह, सिक्खासीलि त्ति वृच्चइ । अहस्सिरे सयादन्ते, न य मम्ममुदाहरे ॥४॥ नासीले न विसीले, न सिया अइलोलुए। अकोहणे सच्चरए, सिक्खासीलि ति वुच्चइ ॥२॥
( ४) प्राणानिद्देसकरे,- गुरुणमुववायकारए। इंगियागारसंपन्ने, से विणीए ति बुच्चइ ॥६॥
(८५-८८)
अह पन्नरसहि ठाणेहि, सुविणीए ति बुच्चइ । नीयावि ती अचवले, अमाई अकुऊहले ॥७॥ अप्पं च अहिक्खिवई, पबन्धं च न कुवई । मेत्तिज्जमाणो भवइ, सुयं लद्धं न मज्जइ ॥८॥ न य पावपरिक्खेवी, न य मित्तेसु कुप्पह । अप्पियस्साऽविमित्तस्स, रहे कल्लाण भासइ nu कलहडमरवज्जिए, बुद्ध अभिनाइए। हिरिमं पडिसंलोणे, सुविणीए ति बुच्चइ ॥१०॥