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विनय-सूत्र
(७६) वृक्ष के मूल से सबसे पहले स्कन्ध पैदा होता है, स्कन्ध के बाद शाखाएँ और शाखाओ से दूसरी छोटी-छोटी शाखाएं निकलती हैं। छोटी शाखाओ से पत्ते पैदा होते है। इसके बाद क्रमश. फूल, फल और रस उत्पन्न होते है।
(८०) इसी भांति धर्म का मूल विनय है और मोक्ष उसका अन्तिम रस है। विनय के द्वारा ही मनुष्य बडी जल्दी शास्त्र-ज्ञान तथा कीर्ति सपादन करता है। अन्त मे, निश्रेयस (मोक्ष) भी इसीके द्वारा प्राप्त होता है।
(६१) इन पांच कारणो से मनुष्य सच्ची शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकता
अभिमान से, क्रोध से, प्रमाद से, कुष्ठ आदि रोग से, और पालस्य से।