________________
विणय-सुत्तं
(७६)
मूलानो बंधप्पभवो दुमस्स,
संघाउ पच्छा समुन्ति साहा। साहा-प्पसाहा विरहन्ति पत्ता,
तो य से पुष्पं फलं रसो य ॥१॥
(८०)
एवं धम्मस्स विणो, मूलं परमो से मोक्खो। जेण कित्ति सुयं सिग्छ, निस्सेसं चाभिगच्छइ ॥२॥
(५१)
अह पंचहि गणेहि, हि सिक्खा न लब्भइ । थम्भा कोहा पमाएणं, रोगेणा लस्सएण य ॥२॥