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भी नहीं किया स्याही तो मेरे काजल ही से बनी है तो ऐसा उसका वहना भूटा ही है। इस पर तो और वीजावोल वगेरह को तो अभी रहने दो बल्कि वह घोटने वाला ही बोल उठेगा कि वाह खूब कहा महाशय जी जरा कहो तो सही कि यह मेरे घोटने के बिना कैसे बन गई मैने सात दिन रात तक अपने घोटने से इसे घोटी है तभी यह बन पाई है मेरा जी जानता है कि मैने इसमे कितनी रगड़ लगाई हैं वरना तो रयाही वन ही जाती मैं देखता कि कैसे बनती है । यह स्याही तो मेरे घोटने से ही बनी है तो इस पर इसे भूटा नहीं कहा जा सकता बस तो इसी प्रकार सभी प्रकार का कार्य उपादान और निमित्त दोनो की समष्टि से बनता है । उसको निश्चय नय उपादान से बना कहता है और व्यवहार नय निमित्त से, सो तो ठीक किन्नु उपादानसे ही कार्य वना है निमित्त होकर भी कुछ नहीं करता यह तो अनभिज्ञता है।
कार्य कारण का स्पष्टीकरण-- जो किया जावे वह कार्य कहलाता है और जिस किसीके द्वारा वह कियाजासके उसे कारण कहा जाता है । कारण सम्पादक है और कार्य सम्पादनीय । अब उस कार्य के होने में वह कारण दो तरह का होता है एक उपादान दूसरा निमित्त । जो स्वयं कार्य रूप में परिणत होता है .इसे उपादान कारण कहते हैं जैसे कि घट के लिये मिट्टी या उस मिट्टी की घट से पूर्ववर्ती पर्याय ।