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हैं और से नहीं । सो ठीक ही है क्योंकि निमित्त भिन्न चीज है जिसको कि निश्चय नय देखता ही नहीं है। फिर यह कहना कैसा कि निश्चय नय में निमित्त होता तो है जरूर परन्तु कुछ करता नहीं है। निमित्त तो है सो व्यवहार नय का विषय है तो उसकी दृष्टि में वह कार्य का करने वाला भी है। जैसे मान लो हमको स्याही बनानी है तो जिस के पास काजल है वह कहता है कि मेरेपास काजल है लो इससे स्याही बनेगी। दूसरे ने कहा लो मेरे पास वीजावोल है इससे स्याही बनेगी। तीसरे ने कहा लो मेरे पास नीलाथोथा है इससे स्याही बनेगी। चौथे ने कहा लो मेरे पास केले के थम्भ का स्वरस है इससे स्याही बनेगी। पांचवें ने कहा लो मेरे पास में घोटना है सो इस घोटने से स्याही बनेगी। स्याही वन गई अव काजल वाला तो कहता है यह स्याही मेरे काजल से धनी है । वीजावोल वाला कहता है कि यह मेरे वीजावोल से बनी है इत्यादि इसी प्रकार घोटने वाला कहता है कि मेरे घोटने से यह स्याही धनी है सभी अपने अपने कारण से उसे बनी हुई बताते हैं सो ठीक ही है । काजल वाला जो कहता है कि यह स्याही मेरे काजल से बनी है उससे अगर पूछा जावे कि यह काजल से ही धनी है या और कोई चीजसे भी तो इसपर वह कहता है कि मेरे काजल से जरूर वनी है और कुछ मुझे मालूम नहीं यहां तक तो ठीक चात है । मगर यह यदि ऐसा कहे कि इस स्याही में हैं तो वीजावोल वगेरह भी फिर भी उन वीजावोल वगेरह ने कुछ