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________________ ( १४ ) - - -- - - और निमित्त के द्वारा होता है। निमित्त भिन्न भिन्न प्रकार का होता है अतः कार्य भी अनेक भांति का वनता है यही जैन दर्शन की मान्यता है। शा- जैन दर्शन में दो नय है एक व्यवहार और दूसरा निश्चय नय । सो श्राप जो कुछ कह रहे हैं वह व्यवहार नय का पक्ष है व्यवहार नय में निमित्त जरूर है परन्तु कान जी ने जो कुछ कहा है वह निश्चय नय से बतलाया है निश्चय नय में तो कार्य अपने अपने उपादान से ही होता है क्योंकि निश्चय नय तो स्वाधीनता का वर्णन करने वाला है वह निमित्त की तरफ क्यों ध्यान दे पराधीनता में क्या जावे। उत्तर-निश्चय नय से अगर कहा जावे तो वहां तो प्रथम तो कारण कार्यपन है ही नहीं क्योंकि निश्चय नय तो सामान्य को विषय करने वाला है जहां कि न तो कोई चीज उत्पन्न ही होती है और न नष्ट ही जैसा कि-नासतो विद्ययतेभावो नाभावोविछतसतः । निश्चयाकिन्तु पर्यायनयात्तावपिवस्तुनि ॥१॥ इसमें बतलाया है। हां अगर निश्चय नय विशेष से भी कहा जाये तो वहां कारण कार्यपन माना जरूर है और वहां उपादान को ही कारण माना है निमित्त को नहीं यह भी सही है क्योकि उसकी दृष्टि में निमित्त होता ही नहीं वह न तो अभिन्न को विषय करने वाला है अतः उपादान को ही जानता है जैसा द्रव्य संग्रह में बतलाया है कि निश्चय नय से आत्मा अपने भावों का ही कर्ता है अर्थात् अभिन्न रूप मे उसके भाव उससे ही होते
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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