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ब्रह्मचर्य-सूत्र
( ५१ ) अमण तपस्वी स्त्रियो के रूप, लावण्य, विलास, हास्य, मधुर वचन, काम-चेप्टा और कटाक्ष आदि का मन में तनिक भी विचार न लाये, और न इन्हें देखने का कभी प्रयत्न करे।
(५२ ) स्त्रियों को रागपूर्वक देसना, उनकी अभिलापा करना, उनका चिन्तन करना, उनका कीर्तन करना, आदि कार्य ब्रह्मचारी पुरुष को कदापि नहीं करने चाहिएँ । ब्रह्मचर्य व्रत में सदा रत रहने की इच्छा रखनेवाले पुरुषो के लिए यह नियम अत्यत हितकर है, और उत्तम ध्यान प्राप्त करने में सहायक है।
ब्रह्मचर्य मे अनुरक्त भिक्षु को मन में वैपयिक आनन्द पैदा करनेवाली तथा काम-भोग की आसक्ति बढानेवाली स्त्री-कया को छोट देना चाहिए।
(५४) ब्रह्मचर्य-रत भिक्षु को स्त्रियो के साथ बातचीत करना और उनसे बार-बार परिचय प्राप्त करना सदा के लिए छोड देना चाहिए।