________________
सत्य-सूत्र
(३८) विचारवान मुनि को वचनशुद्धि का भली भांति ज्ञान प्राप्त करके दूपित वाणी सदा के लिए छोड़ देनी चाहिए और खूब सोच-विचार कर बहुत परिमित और निर्दोप वचन वोलना चाहिए। इस तरह बोलने से सत्पुरुषो में महान् प्रगसा प्राप्त होती है।
(३६) काने को काना, नपुसक को नपुसक, रोगी को रोगी और चोर को चोर कहना यद्यपि सत्य है, फिर भी ऐसा नही कहना चाहिए। (क्योकि इसमे उन व्यक्तियों को दुख पहुंचता है।)
(४०) जो मनुष्य भूल से भी मूलतः असत्य, किंतु ऊपर से सत्य मालूम होनेवाली भाषा बोल उठता है, जब कि वह भी पाप से अछूता नहीं रहता, तब भला जो जान-बूझकर असत्य बोलता है, उसके पाप का तो कहना ही क्या?
(४१) जो भापा कठोर हो, दूसरो को दुख पहुंचानेवाली हो-बह सत्य भी क्यो न हो-नही वोलनी चाहिए। क्योकि उससे पाप का पासव होता है।