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________________ अहिंसा-सूत्र (२७ ) जानी होने का सार ही यह है कि वह किसी भी प्राणी की हिंसा न करे। 'अहिंसा का सिद्धात ही सर्वोपरि है-मात्र इतना ही विज्ञान है। सम्यग् बोध को जिसने प्राप्त कर लिया ऐसा बुद्धिमान मनुष्य हिंसा से उत्पन्न होनेवाले वैर-वर्द्धक एवं महाभयकर दुखो को जानकर अपने को पापकर्म से बचाये। (२६) संसार में प्रत्येक प्राणी के प्रति-फिर भले ही वह शत्रु हो या मित्र--समभाव रखना, तथा जीवन-पर्यन्त छोटी-मोटी सभी प्रकार की हिंसा का त्याग करना-वास्तव में बड़ा ही दुष्कर है ।
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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